यह अकेला अभ्यास ही व्यक्ति को संपूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। हालांकि 12 जनवरी को प्रदेश के सभी जिलों में सामूहिक सूर्य नमस्कार आयोजित किए जाते हैं और इसी क्रम में आज भी जिले में सूर्य नमस्कार के आयोजन होंगे, लेकिन इसे जीवन में नियमित अपनाया जाए तो व्यक्ति से बीमारियां 100 गज दूर रहती हैं। सूर्य नमस्कार में 12 आसन होते हैं, जो हमारे शरीर के संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देते हैं। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। सूर्य नमस्कान के जो 12 आसन है, उनमें प्रणामासान, हाथ अपव्यय, उत्थानासन, अश्व संचालनासन, चतुरांगदंडसन, अष्टांग नमस्कार, भुजंगासन, शॉनसन के नीचे, अश्वसंचालनासन, उत्थानासन, हाथ अपव्यय और प्रणामासन शामिल हैं।
यूं होते हैं सूर्य नमस्कार के 12 आसन
1-दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें।
2-श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं।
3-श्वांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ हो, कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।
4-इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें।
5-श्वांस को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एडिय़ां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एडिय़ों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कंठकूप में लगाएं।
6 -श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें।
7-इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
8 -यह स्थिति, पांचवीं स्थिति के समान।
9-यह स्थिति, चौथी स्थिति के समान।
10-यह स्थिति, तीसरी स्थिति के समान।
11-यह स्थिति, दूसरी स्थिति के समान ।
12-यह स्थिति, पहली स्थिति की भांति रहेगी।
1-दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें।
2-श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं।
3-श्वांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ हो, कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।
4-इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें।
5-श्वांस को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एडिय़ां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एडिय़ों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कंठकूप में लगाएं।
6 -श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें।
7-इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
8 -यह स्थिति, पांचवीं स्थिति के समान।
9-यह स्थिति, चौथी स्थिति के समान।
10-यह स्थिति, तीसरी स्थिति के समान।
11-यह स्थिति, दूसरी स्थिति के समान ।
12-यह स्थिति, पहली स्थिति की भांति रहेगी।