लोककथाओं और बड़े-बुज़ुर्गों के मुताबिक इस मंदिर का इतिहास पांडवों के समय का है। लेकिन लगभग लगभग 95 साल पहले डांग वाले बाबा ने आधुनिक मंदिर की नींव रखी। उस समय एक पेड़ के नीचे देवी मां की मूर्ति मिली थी। जिसके बाद धीरे-धीरे मंदिर श्रद्धालुओं के सहयोग से भव्यता पा गया। बताया गया है कि सुदूर जंगल में आवागमन के साधनों के अभाव में श्रद्धालुओं की मंाग पर वर्ष 1975 में रेलवे ने मंदिर के ठीक सामने ही श्योपुर-ग्वालियर नैरोगेज ट्रेन का हॉल्ट स्टेशन बना दिया। यही वजह है कि जब नैरोगेज चलती थी तब नवरात्रों के दौरान श्रद्धालुओं से ठसाठस भरकर चलती।
35 सालों से चल रही अखंड ज्योति दुर्गापुरी स्थित मां के मंदिर में बीते 30 सालों से अखंड ज्योति भी जल रही है। इस मंदिर में श्योपुर जिले के अलावा अन्य जिलों और राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और देश के अन्य जगहों से भी भक्त आते हैं। नवरात्र के समय खासतौर पर भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।