कराहल तहसील मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम बमोरी भील जनजाति बाहुल्य ग्राम है। इसके साथ ही आसपास के तीन दर्जन गांवों भी भील समाज के ही है। यही वजह है कि बमोरी में गल बाबा के स्थान पर वर्ष में एक बार मेले का आयोजन किया जाता है, इसी क्रम में बीते रोज धूलेंडी के उपलक्ष्य में यहां मेला आयोजित किया गया और गल बाबा की पूजा की। इसके साथ ही गल बाबा की मचान बनाकर मन्नत मांगने वाले लोगों को झुलाया गया।
मान्यता है कि इस झूले में झूलने से मनोकामनापूर्ण होती है। इसके साथ ही दल बाबा से रोग,व्याधी, महामारी आदि सहित अन्य प्रकोप से बचाने की भी मनोकामना की गई। ग्रामीणों के मुताबिक ये परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां के आदिवासी समाज को ये भरोसा है कि उनका देवता जमीन और आसमान दोनों पर राज करता है। इसलिए उसे खुश करने के लिए ये लोग जमीन और आसमान के बीच घूमते हैं।
ऐसे लगवाते हैं गल में झूले
अपनी परंपरा अनुसान भील आदिवासी समाज के लोग पहले तो एक 30-40 फीट ऊंचा मचान बनाते हैं और फिर इस पर क्रेन के जैसे झूला झुलाया जाता है, जिसे गल झुलाना भी कहते हैं। इस दौरान मन्नतधारी को उसके परिजन रंगीन कपड़े और पगड़ी पहनाकर गीत गाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं। यहां तड़वी यानी पुजारी पहले उससे पूजा करवाता है, फिर उसे मचान पर चढ़ाकर झूले पर उलटा लटका देता है। इसके बाद झूले के दूसरे हिस्से पर टंगी रस्सी से लटकाकर लोग झूलते हैं और दूसरी तरफ लटका हुआ मन्नतधारी आसमान में झूलता रहता है। चक्कर पूरा होने पर फिर उससे पूजा करवाई जाती है।