पोते को मिला दादा का साथ कक्षा दूसरी के छात्र नम: शिवाय को उसके दादा बृजेश पाठक का हरकदम पर साथ मिला है। बृजेश बताते हैं कि जब नम: शिवाय ढाई साल का था तो दादी के साथ पूजा करते समय मंत्र का उच्चारण कर रहा था। उन्होंने उसकी तीक्ष्ण बुद्धि को परख लिया। इसके बाद वह उसे मंत्र और श्लोक याद करवाने लगे। इसके बाद उन्होंने सामान्य ज्ञान के प्रश्नों के जवाब बताना शुरू किया। वह सवालों के जवाब रटता नहीं है।
तीन साल की उम्र में मिला था पहला मंच नम: शिवाय जब तीन साल का था, तब उसे कोलारस में स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित मुख्य कार्यक्रम में तत्कालीन एसडीएम आरके पंाडेय ने मंच पर बुलाया। इस दौरान उसने कई मंत्र और श्लोक सुनाए। इसके बाद नम: शिवाय ने पीछे मुडक़र नहीं देखा। इसके बाद कई राष्ट्रीय चैनलों पर उसकी उपलब्धि के बारे में बताया गया। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उसे सम्मानित किया। इसके अलावा कथावाचक मुरारी बापू, विश्वेश्वरी देवी, संत रामभद्राचार्य शामिल ने उसकी प्रतिभा की प्रशंसा की। इनमें रामभद्राचार्य ने तो नम: शिवाय को अपने गुरुकुल में भी बुलवाया, लेकिन उसकी मां तैयार नहीं हुईं।
दादा बनाना चाहते हैं संत, माता-पिता अधिकारी नम: शिवाय को दक्ष बनाने वाले उसके दादा बृजेश पाठक का कहना है कि मेरी इच्छा यह है कि यह बालक बहुत बड़ा संत बने, लेकिन उसके माता-पिता नम: शिवाय को अधिकारी बनाना चाहते हैं। नम: शिवाय के पिता पटवारी हैं तथा उनके दो बेटों में नम: शिवाय बड़ा बेटा है।