हम बच्चों की खिलौने जैसी थीं दादी
अंकिता ने बताया कि जबसे हमने होश संभाला, तभी से दादी को एक जैसा ही देखा। हम सब बच्चोंं के लिए दादी के रहते खिलौनों की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि दादी ही हमारे लिए खिलौने जैसी थीं, जब भी कोई रूठता था तो दादी सबसे पहले मनाने आती थीं। आज जब हमारी दादी भगवान के पास जा रही थीं तो उनके साथ मुक्तिधाम तक का सफर करने की इच्छा हमने अपने परिजनों से कही तो उन्होंने इस बात को सहजता के साथ स्वीकार कर लिया।