अधिकांश केंद्रों की दीवार पर नाश्ते व भोजन की जानकारी अंकित की गई है। इस साप्ताहिक मैन्यू में मीठी दलिया, पौष्टिक खिचड़ी सहित धुली नमकीन तो नाश्ते में लिखी है, जो अधिकांश केंद्रों पर पहुंचता ही नहीं है। जबकि यह नाश्ता हर दिन सुबह 9 बजे केंद्र पर मिलना चाहिए, लेकिन उस समय तक अधिकांश केंद्र खुलते ही नहीं हैं।
आंगनबाड़ी केंद्रों पर जो समूह बरसों से भोजन दे रहे हैं, उनकी कई बार शिकायत होने के बाद भी विभाग ने किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। बल्कि हर साल उन्हें ही रिन्युअल करके केंद्रों की संख्या उनके खाते में बढ़ाते चले गए। बिना महिलाओं वाले समूहों के नाम पर बच्चों का खाना बनाने की शिकायतें जब कुछ स्थानीय महिलाओं ने जनसुनवाई में कई हफ्तों तक की, तब उनके समूह को भी इसमें शामिल कर लिया। लेकिन उन्हें काम एक-दो केंद्रों का ही दिया गया।
जवाब- शहर के इन केंद्रों पर 13 समूह नाश्ता व भोजन देते हैं। पुराने समूहों में से चार-पांच समूहों पर 20-20 केंद्र हैं, जबकि नए समूहों पर एक-दो केंद्र हैं।
सवाल: पुराने क्यों नहीं बदले, नए क्यों जोड़े गए?
जवाब- जो समूह शुरू से काम कर रहे हैं, उन्हें हर साल रिन्युअल किया जाता है, तथा उनका काम ठीक चल रहा है। नए समूह तो इसलिए जोड़े, क्योंकि कुछ महिलाएं लगातार जनसुनवाई में शिकायत कर रहीं थीं।
सवाल: क्या पुराने समूहों में महिलाएं हैं या हलवाई से खाना बनवाते हैं?
जवाब- इस बारे में तो समूह वाला ही बता पाएगा। हमें इस संबंध में जानकारी नहीं है, नए समूह हैं, उनमें महिलाएं काम कर रही हैं।