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समूह पैसा लेने के बाद भी आंगनबाडिय़ों पर बच्चों को नहीं दे रहे नाश्ता

locationशिवपुरीPublished: Jan 06, 2019 05:13:07 pm

Submitted by:

Rakesh shukla

शहर के 128 केंद्रों पर 13 समूह देते हैं भोजन, समूहों की जानकारी नहीं दे सके कार्यक्रम प्रभारी
 

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समूह पैसा लेने के बाद भी आंगनबाडिय़ों पर बच्चों को नहीं दे रहे नाश्ता

शिवपुरी। महिला बाल विकास विभाग द्वारा संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को मिलने वाले नाश्ते व भोजन के बदले में समूह को हर दिन 4.50 रुपए का भुगतान मिलता है, जिसमें डेढ़ रुपए नाश्ते का तथा तीन रुपए खाने के लिए मिलता है। इसमें से नाश्ता तो अधिकांश केंद्रों पर पहुंचता ही नहीं है, जबकि गेहूं बीपीएल रेट से 1 रुपए किलो में समूहों को नागरिक आपूर्ति निगम के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। केंद्रों पर समूहों द्वारा कम भोजन भेजे जाने की खबर पत्रिका में प्रकाशित होते ही शनिवार को पर्यवेक्षक ने उन सभी केंद्रों पर उपस्थिति दर्ज कराई, जहां के फोटो खबर में प्रकाशित किए गए। कथित तौर पर पर्यवेक्षक ने कार्यकर्ताओं को समझाया कि मीडिया के सामने कुछ मत कहा करो। महत्वपूर्ण बात यह है कि शहर के 128 केंद्रों पर जो 13 समूह भोजन देते हैं, वो कौन से हैं तथा किस समूह को कितने केंद्र दिए गए, यह जानकारी कार्यक्रम अधिकारी को भी नहीं थी।
गौरतलब है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में दर्ज बच्चों के मान से नाश्ते व खाने का साप्ताहिक मैन्यू कुछ केंद्रों पर लिखा हुआ है, लेकिन यह केवल प्रिंटिंग तक ही सीमित होकर रह गया। क्योंकि अधिकांश केंद्रों पर नाश्ता पहुंचता ही नहीं है। इसके अलावा खाना भी दर्ज बच्चों के मान से कम भेजा जाता है। जबकि समूहों द्वारा अधिक उपस्थिति दर्शाकर न केवल खाना बनाने का भुगतान अधिक लिया जा रहा है, बल्कि अधिक बच्चे दिखाकर नागरिक आपूर्ति निगम से भी 1 रुपए किलो वाला गेहूं कई क्विंटल अतिरिक्त लेकर उसको बाजार में तथा आटा मीलों पर बेचा जा रहा है। बच्चों के खाने में हो रही इस चोरी में विभाग के जिम्मेदारों से लेकर समूह संचालकों को संरक्षण देने वाले राजनीतिज्ञ भी संलिप्त हैं। इसमें व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि स्व सहायता समूह यानि महिलाओं का एक ऐसा ग्रुप होता है, जिसमें महिलाएं स्वयं काम करके अपनी व समूह की आर्थिक स्थिति को बेहतर करती हैं, लेकिन जिन समूहों पर 20-20 आंगनबाड़ी केंद्रों की जिम्मेदारी है, वो खाना किसी एक हलवाई से बनवाकर बंटवाया जा रहा है, जबकि महिलाओं का कहीं अता-पता ही नहीं है।
दीवार लेखन तक सिमटा मैन्यू
अधिकांश केंद्रों की दीवार पर नाश्ते व भोजन की जानकारी अंकित की गई है। इस साप्ताहिक मैन्यू में मीठी दलिया, पौष्टिक खिचड़ी सहित धुली नमकीन तो नाश्ते में लिखी है, जो अधिकांश केंद्रों पर पहुंचता ही नहीं है। जबकि यह नाश्ता हर दिन सुबह 9 बजे केंद्र पर मिलना चाहिए, लेकिन उस समय तक अधिकांश केंद्र खुलते ही नहीं हैं।
महिलाओं ने उठाई आवाज तो दिया काम
आंगनबाड़ी केंद्रों पर जो समूह बरसों से भोजन दे रहे हैं, उनकी कई बार शिकायत होने के बाद भी विभाग ने किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। बल्कि हर साल उन्हें ही रिन्युअल करके केंद्रों की संख्या उनके खाते में बढ़ाते चले गए। बिना महिलाओं वाले समूहों के नाम पर बच्चों का खाना बनाने की शिकायतें जब कुछ स्थानीय महिलाओं ने जनसुनवाई में कई हफ्तों तक की, तब उनके समूह को भी इसमें शामिल कर लिया। लेकिन उन्हें काम एक-दो केंद्रों का ही दिया गया।
सीधी बात : महिला बाल विकास के कार्यक्रम अधिकारी ओपी पांडेय

सवाल: शहर के 128 केंद्रों पर कितने समूह भोजन देते हैं? तथा किस समूह पर कितने केंद्र हैं?
जवाब- शहर के इन केंद्रों पर 13 समूह नाश्ता व भोजन देते हैं। पुराने समूहों में से चार-पांच समूहों पर 20-20 केंद्र हैं, जबकि नए समूहों पर एक-दो केंद्र हैं।
सवाल: पुराने क्यों नहीं बदले, नए क्यों जोड़े गए?
जवाब- जो समूह शुरू से काम कर रहे हैं, उन्हें हर साल रिन्युअल किया जाता है, तथा उनका काम ठीक चल रहा है। नए समूह तो इसलिए जोड़े, क्योंकि कुछ महिलाएं लगातार जनसुनवाई में शिकायत कर रहीं थीं।
सवाल: क्या पुराने समूहों में महिलाएं हैं या हलवाई से खाना बनवाते हैं?
जवाब- इस बारे में तो समूह वाला ही बता पाएगा। हमें इस संबंध में जानकारी नहीं है, नए समूह हैं, उनमें महिलाएं काम कर रही हैं।

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