शहर में नगरपालिका के 500 से अधिक ट्यूबवेल हैं, जबकि इससे तीन गुना से अधिक निजी ट्यूबवेल हैं, क्योंकि जिसके पास भी पैसा है, वो घर बनाने से पहले बोर करवाता है। इस तरह 5 किमी क्षेत्रफल में 2 हजार से अधिक धरती में छेद करके धरातल की गहराईयों से पानी खींच लिया गया। शहर में 18 तालाब हुआ करते थे, जिनमें से महज अब तीन में ही पानी रह गया, जबकि शेष तालाबों पर कब्जे करके कॉलोनियां बना दी गईं। बरसात के पानी को संरक्षित कर वाटर-लेबल बढ़ाने के कोई प्रयास नहीं किए गए, जिस वजह से यह शहर ड्राई जोन में तब्दील हो गया।
इस बार इसलिए अधिक चिंता
मार्च महीने में ही नपा के 500 ट्यूबवेलों में से आधे सूख गए और जो पानी दे रहे हैं, उसका प्रेशर भी इतना कम है कि आधा घंटे में एक कट्टी भर पा रही है। प्राइवेट टैंकरों के रेट अभी से 300 रुपए हो गए, जो भविष्य में और भी बढ़ेंगे, लेकिन वो भी पानी तभी दे पाएंगे, जब निजी ट्यूबवैलों में पानी मिल पाएगा। नपा के पास टैंकर सप्लाई एक विकल्प है, लेकिन इस बार हुई अल्पवर्षा के चलते हाईड्रेंट भी कब तक पानी दे पाएंगे..?, कहना मुश्किल है। इसलिए शहर की जनता चिंतित है कि इस बार गर्मियों में पानी कैसे और कहां से मिल पाएगा।
निर्माण एजेंसी के हालात
जलावर्धन प्रोजेक्ट की निर्माण एजेंसी नपा है। कमीशनखोरी के गंभीर आरोपों में उलझे नपा के जिम्मेदारों ने दोशियान को भुगतान करने में ही दिलचस्पी दिखाई। व्यवस्था का दु:खद पहलू यह भी है कि नपा के जिम्मेदार ही नहीं चाहते कि हर साल उनके द्वारा मनाया जाने वाला जल महोत्सव बंद हो। क्योंकि हर साल पानी वितरण में ही करोड़ों का भुगतान होता है, जिसमें उनकी भी हिस्सेदारी रहती है।
ऐसे चल रहा शह-मात का खेल
नपा से पेयजल प्रभारी के पद से हटाए गए उपयंत्री एसके मिश्रा जलावर्धन प्रोजेक्ट में नपा की ओर से अभी भी नियुक्त हैं। दोशियान के जीएम महेश मिश्रा व एसके मिश्रा के बीच अंदरूनी तनातनी चल रही है, जिसके चलते वे एक-दूसरे को गलत ठहराने में जुटे हुए हैं। पीएचई के ईई एसएल बाथम भी इंटेकवेेल में छोड़ी गई खामियों पर पर्देदारी करने के फेर में हकीकत से अधिकारियों को दूर बनाए हुए हैं। कलेक्टर तरुण राठी दोशियान के जीएम व पीएचई के ईई, जैसा कह देते हैं वे उसे मान लेते हैं। जबकि पूर्व कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव ऐसी समस्याओं का हल खुद ही ढूंढते थे।
&हम इंटेकवेल पर गए, वहां पर अब सिल्ट ही समस्या बन गई है। पंप को चालू करने एवं सिल्ट निकालने के लिए पीएचई पंप आदि लगा रहे हैं। कल भोपाल से टेक्निकल टीम भी आ रही है। एक बार सिल्ट साफ हो जाएगी तो फिर भविष्य में इस तरह की परेशानी नहीं आएगी।
तरुण राठी, कलेक्टर शिवपुरी
इस बार इसलिए अधिक चिंता
मार्च महीने में ही नपा के 500 ट्यूबवेलों में से आधे सूख गए और जो पानी दे रहे हैं, उसका प्रेशर भी इतना कम है कि आधा घंटे में एक कट्टी भर पा रही है। प्राइवेट टैंकरों के रेट अभी से 300 रुपए हो गए, जो भविष्य में और भी बढ़ेंगे, लेकिन वो भी पानी तभी दे पाएंगे, जब निजी ट्यूबवैलों में पानी मिल पाएगा। नपा के पास टैंकर सप्लाई एक विकल्प है, लेकिन इस बार हुई अल्पवर्षा के चलते हाईड्रेंट भी कब तक पानी दे पाएंगे..?, कहना मुश्किल है। इसलिए शहर की जनता चिंतित है कि इस बार गर्मियों में पानी कैसे और कहां से मिल पाएगा।
निर्माण एजेंसी के हालात
जलावर्धन प्रोजेक्ट की निर्माण एजेंसी नपा है। कमीशनखोरी के गंभीर आरोपों में उलझे नपा के जिम्मेदारों ने दोशियान को भुगतान करने में ही दिलचस्पी दिखाई। व्यवस्था का दु:खद पहलू यह भी है कि नपा के जिम्मेदार ही नहीं चाहते कि हर साल उनके द्वारा मनाया जाने वाला जल महोत्सव बंद हो। क्योंकि हर साल पानी वितरण में ही करोड़ों का भुगतान होता है, जिसमें उनकी भी हिस्सेदारी रहती है।
ऐसे चल रहा शह-मात का खेल
नपा से पेयजल प्रभारी के पद से हटाए गए उपयंत्री एसके मिश्रा जलावर्धन प्रोजेक्ट में नपा की ओर से अभी भी नियुक्त हैं। दोशियान के जीएम महेश मिश्रा व एसके मिश्रा के बीच अंदरूनी तनातनी चल रही है, जिसके चलते वे एक-दूसरे को गलत ठहराने में जुटे हुए हैं। पीएचई के ईई एसएल बाथम भी इंटेकवेेल में छोड़ी गई खामियों पर पर्देदारी करने के फेर में हकीकत से अधिकारियों को दूर बनाए हुए हैं। कलेक्टर तरुण राठी दोशियान के जीएम व पीएचई के ईई, जैसा कह देते हैं वे उसे मान लेते हैं। जबकि पूर्व कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव ऐसी समस्याओं का हल खुद ही ढूंढते थे।
&हम इंटेकवेल पर गए, वहां पर अब सिल्ट ही समस्या बन गई है। पंप को चालू करने एवं सिल्ट निकालने के लिए पीएचई पंप आदि लगा रहे हैं। कल भोपाल से टेक्निकल टीम भी आ रही है। एक बार सिल्ट साफ हो जाएगी तो फिर भविष्य में इस तरह की परेशानी नहीं आएगी।
तरुण राठी, कलेक्टर शिवपुरी