माधव नेशनल पार्क के अंदर स्थित बलारपुर गांव में अधिकांश परिवार आदिवासी-सहरिया निवास करते थे। पार्क को खाली कराए जाने के लिए इस गांव में रहने वाले परिवारों को वर्ष 2000 में विस्थापित करके उन्हें नया बलारपुर में सौ आवास बनाकर दे दिए। विस्थापन की शर्तों के अनुरूप प्रत्येक परिवार को कृषि के लिए 2 हेक्टेयर यानि 10 बीघा का पट्टा दिया जााना था। लेकिन इनमें से केवल 61 परिवारों को पथरीली जमीन में पट्टा दिया गया, जिसमें यह परिवार एक ही फसल कर पाते हैं, क्योंकि आसपास कोई तालाब या पानी की सुविधा नहीं है, जबकि 39 परिवारों को अभी तक आजीविका के लिए कोई भूमि नहीं दी गई।
विस्थापित परिवारों में 30 से अधिक विधवाएं
नया बलारपुर गांव में विस्थापित किए गए परिवारों के पास आजीविका का साधन न होने की वजह से वे आसपास खदानों पर काम करने जाते हैं। जिसके चलते वे टीबी व गेंगरीन जैसे गंभीर बीमारियों से ग्रसित होकर 50 की उम्र पार करने से पहले ही दुनिया छोड़ गए। जिसके चलते इस गांव में लगभग 30 से अधिक महिलाएं विधवा हैं।
यह कहकर कलेक्टर ने झाड़ा पल्ला
जैनिथ संस्था के अभय जैन ने बताया कि गुरुवार की सुबह 11 बजे जिलाधीश ने मिलने का समय दिया था, लेकिन वे शाम को जब अपनी गाड़ी में बैठ रहीं थीं, तो उन्होंने वाहन में बैठे हुए ही इन परिवारों से कहा कि अभी नेशनल पार्क के डायरेक्टर नए आए हैं, इसलिए उनसे पहले इस संबंध में बात करेंगे, तब कुछ कर सकेंगे।