पंजीयनकर्ता ऑपरेटर व अधिकारियों की भी सांठ-गांठ
जब इस बात की पड़ताल की गई कि जब सूरज सिंह और रामजीलाल ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया ही नहीं है और न ही उन्होंने अपनी जमीन किसी मुकेश सोनी को किराए पर अथवा बटाई पर दी तो फिर पंजीयन कैसे हो गया?। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार यह घालमेल संस्था के अधिकारी और ऑपरेटर की मिलीभगत से किया जाता है। अगर जिले भर में इस तरह के पंजीयनों की पड़ताल की जाए तो ऐसे हजारों फर्जी पंजीयन निकलेंगे, जिनके आधार पर कई व्यापारी बाजार से खरीदा हुआ सस्ता गेहूं उपार्जन केंद्रों पर समर्थन मूल्य पर खपाएंगे।
फर्जी पंजीयन का ये है पूरा खेल
फर्जी पंजीयन क्यों कराए जाते हैं जब इस खेल को समझने के लिए सूत्रों से जानकारी ली तो पता चला कि वर्तमान में सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रूपए प्रति क्विंटल तय किया है, यानि कि उपार्जन केंद्रों में इस निर्धारित कीमत पर गेहूं बिकेगा। वहीं बाजार में गेहूं का दाम 1500 से 1600 रुपए तक चल रहा है। ऐसे में व्यापारी बाजार से गेहूं खरीद कर इन फर्जी पंजीयन के आधार पर समर्थन मूल्य पर बेच देंगे। ऐसे में उन्हें सीधा-सीधा 300 से 400 रुपए तक का प्रति क्विंटल पर लाभ होता है।
इनकी सुनें
-मैं पांच-छह साल से इन सभी किसानों की बटाई करवा रहा हूं। मैंने कोई फर्जीवाड़ा नहीं किया है, वह सब मेरे ही किसान हैं।
मुकेश सोनी, पंजीयनकर्ता
ये बोले किसान
-मैंने कहीं कोई गेहूं चना का पंजीयन नहीं करवाया है। मेरे नाम पर हुए पंजीयन की मुझे कोई जानकारी नहीं है। मुकेश सोनी ने मेरी जमीन पर कोई बटाईदारी नहीं की है, मैं अपनी जमीन पर स्वयं खेती करता हूं।
रामजीलाल, किसान
सूरज सिंह, किसान ये बोले जिम्मेदार
-फिलहाल ऐसा कोई मामला मेरे संज्ञान में नहीं है, परंतु अगर किसी ने इस तरह का कोई फर्जी पंजीयन कराया है तो मैं मामले की जांच करवा कर वैधानिक कार्रवाई करूंगा।
अखिलेश शर्मा, तहसीलदार, कोलारस