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शिवपुरी

कोरोना के फेर में नहीं हो रही आमजन की सुनवाई

शिवपुरी में कोरोना के अलावा भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनका समाधान कराने के लिए आमजन कलेक्टोरेट, नगर पालिका सहित अन्य दफ्तरों में चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही।

शिवपुरीMay 29, 2020 / 11:40 pm

Rakesh shukla

कोरोना के फेर में नहीं हो रही आमजन की सुनवाई

कोरोना के फेर में नहीं हो रही आमजन की सुनवाई

शिवपुरी. शिवपुरी में कोरोना के अलावा भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनका समाधान कराने के लिए आमजन कलेक्टोरेट, नगर पालिका सहित अन्य दफ्तरों में चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उसकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही। कलेक्टोरेट में जहां ताले लटका दिए गए, वहीं नगर पालिका में भी जिम्मेदार कोरोना की आड़ में घर पर आराम फरमा रहे हैं। जनसुनवाई पहले ही बंद हो चुकी है और अब 181 पर भी केवल कोरोना संबंधित शिकायतों की ही सुनवाई की जा रही है। ऐसे में आमजन खुद को ठगा महसूस कर रहा है, कि आखिर वो अपनी फरियाद लेकर जाए तो कहां जाए..? ज्ञात रहे कि कोरोना संक्रमण से पहले तक आमजन की शिकायतों की सुनवाई के लिए कई प्लेटफार्म थे, जैसे हर मंगलवार होने वाली जनसुनवाई, अधिकारियों के दफ्तरों में बेरोकटोक आवाजाही व सीएम हेल्पलाइन, इनमें से कहीं भी शिकायत करने पर सुनवाई तो होती थी, लेकिन जबसे कोरोना ने पैर पसारे हैं, तबसे लोगों की दूसरी समस्याओं की सुनवाई ही खत्म हो गई। इन हालातों के बीच पुलिस अधीक्षक व एडीशनल एसपी का दफ्तर यदा-कदा खुलता है और वे बैठते भी हैं, लेकिन अन्य दूसरे विभाग में तो ऐसा लग रहा है मानो कोरोना का कफ्र्यू लगा हो। कलेक्टर के केबिन वाला मुख्य द्वार बंद रहता है, एडीएम ऑफिस जाने वाली गैलरी के दरवाजे पर भी ताला लटका हुआ है।
सीएम हेल्पलाइन में भी कोरोना की सुनवाई
कोरोना से पहले तक सीएम हेल्पलाइन में सभी तरह की शिकायतों की सुनवाई होती थी, लेकिन अब फोन लगाने पर वहां से एक ही संदेश आता है कि सिर्फ कोरोना से संबंधित शिकायत हो तो बताएं, जबकि सीएम हेल्पलाइन में की जाने वाली शिकायत संबंधित विभाग के पास जाती थी, और काम हो जाता था।
यह आ रही परेशानी
मेडिकल कॉलेज में फार्मासिस्ट रहीं वंदना तिवारी की मौत के बाद उनके परिवार को किसी तरह की कोई मदद अभी तक नहीं मिली। पिछले दिनों परमीशन लेकर बमुश्किल ग्वालियर से शिवपुरी आए वंदना के पति घंटों तक कलेक्टोरेट के बंद गेट पर खड़े होकर इंतजार करना पड़ा। जब कलेक्टर से वाट्सऐप पर बात हुई, तब शाम को उनसे ऑफिस में मुलाकात हो सकी। आमजन के पास न तो कलेक्टर का मोबाइल नंबर है और न ही वो वाट्सऐप पर अपनी पीड़ा बता सकता है।
लॉकडाउन के फेर में परमीशन देने की जिम्मेदारी अपर कलेक्टर (एडीएम) को दी गई है। हालांकि परमीशन के लिए ऑनलाइन एप्लाई किया जाता है, लेकिन जब लंबे इंतजार के बाद भी परमीशन नहीं मिलती तो लोग एडीएम से खुद मिलने के लिए जाते हैं, क्योंकि इस दौरान वे मोबाइल भी परिचितों के ही रिसीव कर रहे हैं। ऐसे में एडीएम दफ्तर तक जाने से पहले ही गेट में ताला लटका हुआ है, तो फिर परमीशन के लिए वो शख्स कहां अपनी पीड़ा बताए।
लॉकडाउन के चलते जहां गरीब परिवारों को तीन माह का राशन दिए जाने का आदेश हुआ था, लेकिन जिले में एक नहीं दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां एक या दो माह का ही राशन दिया गया। इतना ही नहीं स्कूली बच्चों को दिए जाने वाले राशन में भीबड़ा घोटाला कर दिया। राशन न मिलने की शिकायत करने लोग फूड विभाग के ऑफिस कैसे जाएंगे, रास्ते में ही बैरीकेड्स लगा दिए गए।

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