साइलेंसर निकाल कर चलाए थे ट्रैक्टर ग्रामीणों के अनुसार 1971 के युद्ध के दौरान पाक सेना ने गांव नग्गी क्षेत्र को घेर लिया था। उनके लड़ाकू टैंक नग्गी सीमा क्षेत्र पर पहुंच चुके थे। इधर, भारतीय बॉर्डर सीमा सुरक्षा बल के भरोसे था। सेना को आने में एक दिन और लग सकता था। इस पर नग्गी के लोगों ने बीएसएफ व प्रशासन का न केवल हौसला बंधाया बल्कि आसपास के गांव बुर्जवाला, भुट़्टीवाला, रड़ेवाला आदि से करीब दस-बारह टै्रक्टर मंगवाए गए। इनके साइलेंसर निकालकर रात को सीमा क्षेत्र पर घुमाया गया। साइलेंसर निकलने से ट्रैक्टरों की आवाज टैंकों जैसी आने लगी। इससे पाक सेना को में घबराहट बढ़ और वह पीछे हट गई।
सेना को पहुंचाई खाद्य सामग्री 1971 के युद्ध समाप्त होने के दस दिन भी एक घटना घटी। सीमा से सेना लौट चुकी थी। तभी पाक सेना फिर से भारतीय सीमा में घुसी और करीब वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। सेना की चार पैरा बटालियन को क्षेत्र मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। चार पैरा बटालियन तुरंत यहां पहुंची और 28 दिसम्बर की सुबह चार बजे हमला बोला। दो घंटे की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को फिर पराजय का मुंह देखना पड़ा। उस समय नग्गी के लोगों ने सेना को भोजन, दूध व अन्य खाद्य सामग्री पहुंचाकर उदाहरण पेश किया।
प्रतिवर्ष लगता है मेला 1971 में भारतीय सेना के आक्रमण को विफल करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने तोप से 72 गोले बरसाए जिससे 4 पैरा बटालियन के 21 अधिकारी व जवान शहीद हो गए। भारतीय सेना के इतिहास में यह लड़ाई ‘सैंड ड्यून’ के नाम से दर्ज है। युद्ध में शहीद हुए रणबांकुरों की स्मृति में उसी जगह पर एक स्मारक व मां दुर्गा का मंदिर बनाया गया। हर साल 28 दिसम्बर को यहां मेला लगता है इसमें बड़े सैन्य अधिकारियों के अलावा आसपास क्षेत्र के लोग शामिल होते हैं।
युद्ध हुआ तो करेंगे सहयोग सेना पर हमले के बाद नग्गी के लोग फिर जोश में हैं। पूूर्व सरपंच रणजीत सहू, राजेन्द्र सिहाग व समीर सहू आदि कहते हैं कि 1971 में भी उन्होंने सेना का साथ दिया था और अब भी वे तैयार हैं। ग्रामीण चाहते हैं कि युद्ध हो ताकि वे कंधे से कंधा मिलाकर भारतीय सेना का सहयोग कर सकें। विदित रहे कि 1971 युद्ध के दौरान सीमा क्षेत्र पर लगे गांवों को खाली करवा लिया था लेकिन नग्गी लोगों ने एेसा नहीं किया और सेना का सहयोग किया था।