scriptबिजली का दुष्चक्र | vicious circle of power | Patrika News

बिजली का दुष्चक्र

locationशिवपुरीPublished: Sep 02, 2016 04:11:00 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

कहने को राजस्थान सरकार ने कागजों में पांच बिजली कम्पनियां बनाकर राज्य का सम्पूर्ण बिजली क्षेत्र उनके हवाले कर दिया है। बिजली की दरों पर निर्णय के लिए स्वतंत्र बिजली विनियामक आयोग भी बना दिया है।

rajasthan discom

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कहने को राजस्थान सरकार ने कागजों में पांच बिजली कम्पनियां बनाकर राज्य का सम्पूर्ण बिजली क्षेत्र उनके हवाले कर दिया है। बिजली की दरों पर निर्णय के लिए स्वतंत्र बिजली विनियामक आयोग भी बना दिया है। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। सरकार ही उनके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करती है और वही पर्दे के पीछे से दरों के निर्धारण में बड़ी भूमिका निभाती है। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो बिजली कम्पनियों में जूनियर इंजीनियर से लेकर सलाहकार तक की नियुक्ति उसके इशारे बिना नहीं होती। एक जमाना था जब पृथ्वी सिंह और आर.सी. दवे जैसे मुख्य अभियंताओं से बात करने में तब के मुख्यमंत्रियों तक की घिग्गी बंधती थी। आज तो बिजली कम्पनियों के सलाहकार की लाठी ही इन कम्पनियों के अध्यक्षों को मनचाहा हांक देती है। 
राज्य के विकास की जीवन रेखा कहे जाने वाले बिजली क्षेत्र को सरकार कितना महत्व देती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसका कर्ताधर्ता राज्यमंत्री को बनाकर रखती है। एक वक्त था जब बिजली कम्पनियों का सारा कामकाज तकनीकी लोग देखते थे। आज तो पूरा जीवन इनमें खपाने वाले इंजीनियरों की कोई पूछ नहीं दिखती। ‘हर मर्ज की दवाÓ कहे जाने वाले आईएएस अफसर बिजली कम्पनियों के चेयरमैन बनकर बैठे हैं। इसके बावजूद हालात यह हैं कि सन् 2000 में जब राजस्थान राज्य विद्युत मंडल भंग हुआ तब उसका घाटा था करीब 700 करोड़ और आज इन सारी बिजली कम्पनियों का घाटा पहुंच गया है एक लाख करोड़ रुपए। जो कुर्सी पर बैठता है वो आंकड़ों की बाजीगरी से फाइलों का पेट भरता है। अपने आकाओं को खुश रख उनके ‘मंसूबोंÓ को पूरा करता है। उसे इस बात की कोई चिंता नहीं होती कि राज्य की जनता का क्या हो रहा है या क्या होगा?
उसे तो चिंता रहती है उन ‘लक्ष्यों’ की जो उसे दिए जाते हैं। 16 साल पहले जब बिजली बोर्ड तोड़ा गया तब लक्ष्य था घाटे से उबरने के लिए उपभोक्ता को भाव के भाव बिजली देने, छीजत को कम करने, जरूरत के हिसाब से वितरण का निजीकरण करने और सरकारी दखलअंदाजी को खत्म करने का। लेकिन 16 सालों में हालात और विस्फोटक हो गए। कुएं से निकल कर खाई में जा गिरे। घाटा एक लाख करोड़ रुपए पहुंचा ही प्रभावशाली राजनेताओं के जिलों में तो छीजत भी 50 प्रतिशत पहुंच गई। छीजत यानी चोरी। इंजीनियर उसे रोकने जाएं तो राजनेता आत्महत्या और आत्मदाह की धमकी पर उतर आते हैं। 
बिजली कम्पनियों के बढ़ते घाटे का असर यह हुआ कि कर्मचारी आधे रह गए, लेकिन अफसर दुगुने हो गए। तकनीकी कर्मचारी तो और भी कम। फॉल्ट ठीक करने से लेकर बिल बनाने और जमा करने तक का ज्यादातर काम ठेके के कर्मचारियों के जिम्मे कर दिया गया। जिन्हें पता ही नहीं होता कि ठेकेदार उन्हें कल रखेगा या हटा देगा। ऐसे कर्मचारी बिजली कम्पनियों को क्या निहाल करते। तो लग गया वर्ष 2000 के बिजली सुधारों को पलीता। उत्पादन भी बढ़ा, उपभोक्ता भी बढ़े, लेकिन खजाना और खाली होता गया। किसी को नहीं पता आमदनी कहां गई, गीला कोयला पी गया अथवा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। सरकारों ने कभी रि-स्ट्रक्चरिंग के नाम पर, तो कभी खेती की बिजली दरों के नाम पर हजारों करोड़ रुपए देने के वादे तो किए पर दिया तब जब कंपनियां गंभीर वित्तीय हालात में पहुंच गईं। 
इस सबका नतीजा यह हुआ कि हर महीने हजारों रुपए का लम्बा-चौड़ा बिल भरने के बावजूद राज्य के सवा करोड़ बिजली उपभोक्ताओं में से हरेक आज 69 हजार रुपए का कर्जदार हो गया। बिजली कम्पनियों का कर्ज उसके माथे मढ़ गया। पहले सरकार ने उदय योजना के नाम पर बिजली कम्पिनयों के 60 हजार करोड़ का घाटा तो उसके माथे मढ़ा ही और अब विश्व बैंक से 250 मिलियन डॉलर का नया कर्ज ले लिया। 
सवाल यह है कि कर्जे का यह दुष्चक्र कब और कैसे रुकेगा? इस बात की क्या गारंटी है कि राज्य की जनता पर अब नया कर्ज नहीं चढ़ेगा और विश्व बैंक से लिया कर्जा जिस काम के लिए लिया है उसी काम आएगा। इस बात भी गारंटी कौन देगा कि यह पैसा राजनेता और अफसरों की चारागाह नहीं बनेगा? और यदि बना तो उन पर कौन एक्शन लेगा? यदि यह सब नहीं होता तब फिर जनता सारे कर्ज क्यों चुकाए? नेता हो या अफसर सबकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। असफलता की जिम्मेदारी भी वे ही चुकाएं। 
सवाल और भी हैं। जब यह सब हो रहा है तब विपक्ष कहां है? क्या उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? क्या वह राज्य की जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है? किसी न किसी को तो जनता की आवाज बनना ही होगा। आखिरी बारी इस प्रदेश के नौजवानों की आएगी। इससे पहले कि हालात और बिगड़ें, उन्हीं को आगे आना होगा। 
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