scriptपांडव कालीन विभूतिनाथ मंदिर पर उमड़ा आस्था का जन सैलाब, जानें क्या है इस मन्दिर की मान्यता | Importance of Bibhuti Nath Temple of Pandavas on Mahashivratri | Patrika News

पांडव कालीन विभूतिनाथ मंदिर पर उमड़ा आस्था का जन सैलाब, जानें क्या है इस मन्दिर की मान्यता

locationश्रावस्तीPublished: Feb 21, 2020 08:15:56 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

शिवालयों में सुबह से ही बम भोले बम भोले के जयकारे गुंजायमान रहे।

पांडव कालीन विभूतिनाथ मंदिर पर उमड़ा आस्था का जन सैलाब, जानें क्या है इस मन्दिर की मान्यता

श्रावस्ती. जिले के कई शिवालयों में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। जिले के कई शिवालयों में सुबह से ही बम भोले बम भोले के जयकारे गुंजायमान रहे। मंदिरों में तड़के सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार देखने को मिली। महाशिवरात्रि के अवसर पर पांडव कालीन विभूतिनाथ मंदिर सहित अन्य शिवालयों को विशेष तौर पर सजाया गया था। शिव मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी थी।

धार्मिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालुओं ने शिवालयों में जलाभिषेक कर बेलपत्र, भांग , धतूरा आदि चढ़ाए। इसके साथ ही रुद्राभिषेक और शिव महिमा का पाठ भी मंदिरों में हुआ। देर रात से ही बारिश होने के बाद भी श्रद्धालुओं की कतार मंदिरों में लगी रही। दिन चढ़ने के साथ ही जलाभिषेक के लिए श्रद्धालु की संख्या में काफी इजाफा हुआ। लोगों ने व्रत रखकर शिव पूजन किया और आशीर्वाद लिया। प्रशासन की ओर से मंदिरों में सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस की तैनाती भी की गई। डीएम और एसपी सहित काफी संख्या में पुलिस फ़ोर्स भी सुरक्षा की दृष्टि से तैनात रही।

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विभूतिनाथ मंदिर का इतिहास

श्रावस्ती जिले के सिरसिया इलाके में स्थित प्राचीन पांडव कालीन विभूतिनाथ मंदिर आसपास के जिलों के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। विभूतिनाथ मंदिर में हर सोमवार और त्रियोदशी को शिवभक्तों का मेला लगता है। इसके साथ ही अमावस्या, कजरी तीज, मलमास और महाशिवरात्रि पर लाखों की संख्या में शिव भक्त जलाभिषेक करते हैं। यहां की मान्यता है कि परिसर में स्थित यक्ष सरोवर के जल और सफेद कमल के फूल से अभिषेक करने पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।

ऐसी मान्यता है कि विभूतिनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने अपने वनवास के अंतिम चरण में की थी। और यहीं से अज्ञात वास के लिए चले गए थे। यह भी बताया जाता है कि विभूतिनाथ के उत्तर स्थित यक्ष सरोवर जिसे अब रजिया ताल कहा जाता है। यहीं पर युधिष्ठिर और यक्ष का शास्त्रार्थ हुआ था। जिससे प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी भाईयों को जीवनदान दिया था। और पांडव पुत्रों को अज्ञात वास के लिए विराट नगरी का पता बताया था। जिसके बाद पता चलने पर दुर्योधन और कर्ण पांडवों को खोजते हुए द्वेतवन में आए थे। और विभूतिनाथ मंदिर के आस पास रमणीक स्थान देख कर कुछ समय रुक कर तपस्या भी की थी। और पानी की किल्लत को देखते हुए कर्ण ने भगवान शिव से पानी के लिए प्रार्थना की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मंदिर के पास दो जलस्रोत उत्पन्न किए। जिनमें से आज भी पानी निकलता रहता है। और पानी कभी समाप्त नहीं होता। जबकि दोनों स्थानों पर जलस्रोत के स्थान पर छोटे छोटे गड्ढे ही हैं।

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इलाके के बुजुर्ग और पुजारी बताते हैं कि मंदिरों को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने देश के कोने कोने में अपने सिपहसालारों को भेजा था। एक सिपहसालार सैनिकों की टुकड़ी लेकर विभूतिनाथ मंदिर भी आया था। और मंदिर को तोड़ कर शिवलिंग को तहस नहस करने के लिए काफी उपाय किया। लेकिन जब सैनिक शिवलिंग को तोड़ने लगे तो उसमें से खून की धारा फूट पड़ी। जिसे देखकर सैनिक भयभीत होकर भाग गए।

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