scriptमप्र का एक ऐसा गांव जहां आजादी के सात दशक बाद भी नहीं पहुंची बिजली | A village of MP that has not reached even after seven decades of indep | Patrika News

मप्र का एक ऐसा गांव जहां आजादी के सात दशक बाद भी नहीं पहुंची बिजली

locationसीधीPublished: Jul 26, 2019 08:16:27 pm

Submitted by:

Manoj Kumar Pandey

आजादी के सात दशक बाद भी बिजली के प्रकाश को तरस रहे ताल गांव के निवासी, सीधी जिले की छग राज्य की सीमा से जुड़े ताल गांव का मामला, विद्युतीकरण की अनेको योजनाएं आईं, पर यह गांव नहीं हो सका विद्युतीकृत, सौर्य उर्जा से किया गया था विद्युतीकरण पर चोरों की करतूत ने इस योजना पर भी फेर दिया पानी

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सीधी। सरकार द्वारा भले ही प्रदेश के कोने-कोने मे राजीव गांधी विद्युतीकरण, सौभाग्य योजना सहित अन्य योजनाओं के तहत बिजली पहुंचाने की बात कही जा रही है। किंतु हकीकत पर गौर किया जाय तो आलम ये है कि आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां बिजली के प्रकाश के लिए आजादी के सात दशक बाद भी ग्रामीण तरस रहे हैं। ऐसा ही एक गांव जिले के आदिवासी बाहुल्य जनपद पंचायत कुसमी अंतर्गत ताल गांव का है, जो की प्रदेश सहित जिले के अंतिम छोर मे बसा हुआ है। इस गांव को छूकर प्रवाहित होने वाली मवई नदी प्रदेश की सीमा तय करती है। यहां निवासरत ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि वर्ष 2014 मे ग्रामीणों के विरोध के बाद सोलर प्लांट का काम शुरू किया गया था, और 2015 मे सोलर प्लांट से गांव मे रोशनी तो हुई लेकिन ये रोशनी ज्यादा दिनों तक टिक न सकी और प्लांट मे लगाई गई 18 नग सोलर प्लेट अज्ञात व्यक्तियों के द्वारा रात मे निकाल ली गई। जिसकी सूचना भी पुलिस चौकी पोंड़ी मे दी गई थी। किंतु पुलिस द्वारा महज दो नग सोलर प्लेट ही बरामद की गई थी, और तभी से गांव मे फिर से अंधेरा छा गया।
बताया गया कि बीच-बीच मे शिकायतें भी ग्रामीणों के द्वारा की जाती रही है। तथा मकैनिकों के द्वारा सुधार का प्रयास भी किया गया। लेकिन दो चार दिन बाद फिर वही हाल हो जाता था। अब स्थिति यह हो गई है बरसात की राते अंधेरे मे ही कटती हैं। तथा गांंव के चारो तरफ जंंगल होने के कारण जहरीले कीड़े मकोड़ों का डर हमेशा बना ही रहता है।
अंधेरे मे होती हैं शादियां-
गांव की महिलाओं ने बताया कि शादी व्याह के सीजन मे इस गांव की आदिवासी लड़कियों की शादी आज भी अंधेरे में ही संपन्न होती है। बताया गया कि इस गांव मे जनरेटर आदि मंगवाना भी काफी मंहगा पड़ता है। क्योंकि जनरेटर के किराया से ज्यादा वाहन का भाड़ा लग जाता है। अत: लालटेन व चिमनी के प्रकाश ही काम चलाना पड़ता है। वहीं बेटो की शादी मे बिजली के उपकरण भी दहेज मे नहीं लिए जाते हैं। बताया कि आने जाने का किराया जोड़ दिया जाय तो इस गांव के लोगों को गेहूं की पिसाई तीन रुपए प्रति किलो पड़ती है।
ग्रामीणों ने की बिजली मांग-
ताल के ग्रामीण आदिवासियों का कहना है कि हम लोगों के इच्छा के विपरीत यदि गांव मे सोलर प्लांट न लगाया गया होता तो अब तक हम लोगों को भी बिजली की सुविधा मिल जाती और ग्रामीणों को सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध हो जाती। ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि गांव के बगल से ही कुंदौर गांव के लिए विद्युत लाइन निकली है। उसी मेन लाइन से ताल गांव में भी विद्युतीकरण किया जा सकता है। बिजली की सुविधा मिल जाने से यहां के आदिवासियों की माली हालत मे सुधार हो सकता है। ग्रामीणों द्वारा विद्युतीकरण की मांग प्रशासन से की गई है।
ग्रामीणों ने सुनाया दर्द-
…….ताल गांव प्रदेश की सीमा में है। पड़ोसी राज्य के गांव में बिजली का प्रकाश देखकर मन तरस जाता है। लगता है क्या हम लोगों को भी कभी बिजली की सुविधा मिल पाएगी। बजली बिना विकास अधूरा लगता है।
मोहनलाल गुप्ता, स्थानीय निवासी
……….पांच वर्ष पूर्व सोलर प्लांट लगाया गया था। कुछ दिनों तक तो रोशनी हुई। लेकिन 18 नग सोलर प्लेटों के चोरी होने के बाद फिर गांव में अंधेरा हो गया है। बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए।
नीलकंठ सिंह गोंड़, स्थानीय निवासी
……….गांव की बेटियों की शादी इस जमाने मे भी चिमनी लालटेन के प्रकाश मे होती है। बेटों की शादी मे बिजली के उकरण नहीं लिए जाते हैं। यह देखकर मन काफी दुखी हो जाता है। लगता है हमारा गांव बहुत पीछे है।
विमला सिंह गोंड़, स्थानीय निवासी
……….बिजली नहीं होने से गांव की जमीन एक सीजन मे बंजर पड़ी रहती है। जिससे भूखों मरने की स्थिति पैदा हो जाती है। गांव मे बिजली पहुंच जाय तो हम लोगों की दरिद्रता भी दूर हो सकती है, खेती मे सुविधा हो जाएगी।
मानवती बैगा, स्थानीय निवासी
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