आलम यह है कि जिला अस्पताल से निकलने वाला बॉयो वेस्ट परिसर में ही खुले में जहां-तहां फेंक दिया जा रहा है। इनमें पट्टियां, सीरिंज, खाली बोतल, टिश्यु पेपर आदि अस्पताल भवन के पीछे फेंका जा रहा है। सामान्य तौर पर जारी बॉयो वेस्ट के निस्तारण विधि का भी पालन नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं नगर निगम के कर्मचारी उसे हटाने की बजाय उसमें आग लगा दे रहे हैं।
अब जहां सुप्रीम कोर्ट व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सामान्य कूड़े के ढेर में आग लगाने की मनाही कर चुका है वहीं इस अस्पताल में बॉयो वेस्ट को जलाया जाना आम लोगो के साथ उन मरीजों की जान से खिलवाड़ है जो वहां इलाज के लिए आ रहे हैं या भर्ती हैं। कारण इस कुड़े के ढेर से उठने वाला धुआं अत्यंत जहरीला होता है जो अस्थमा, सांस की बीमारी वाले मरीजों के लिए घातक है।
नगर निगम कर्मचारियों पर लापरवाही इस कदर हावी है कि वो अगर इस कूड़े को जलाते नहीं तो उसे हफ्तों वहीं सड़ने को छोड़ देते हैं जिससे उठने वाली दुर्गंध से आस-पास से गुजरना मुश्किल हो जाता है। इससे तमाम संक्रमण फैलने की आशंका बराबर बनी रहती है। वो भी कोरोना काल में इस तरह की लापरवाही को जानलेवा बताया जा रहा है।
लेकिन नगर निगम तो लापरवाह है ही जिला अस्पताल प्रशासन का ध्यान भी इस तरफ नहीं जाता जबकि नियमानुसार अस्पताल प्रशासन को ही बॉयो वेस्ट के निस्तारण का इंतजाम करना चाहिए। लेकिन वह नहीं हो रहा। बताया जा रहा है कि जिला अस्पताल से निकलने वाले बॉयो वेस्ट के निस्तारण के लिए एक कंपनी को टेंडर दिया गया है, जिसका कार्य रोजाना मेडकल वेस्ट को एकत्र कर सुरक्षित निस्तारण करना है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
लेकिन नगर निगम तो लापरवाह है ही जिला अस्पताल प्रशासन का ध्यान भी इस तरफ नहीं जाता जबकि नियमानुसार अस्पताल प्रशासन को ही बॉयो वेस्ट के निस्तारण का इंतजाम करना चाहिए। लेकिन वह नहीं हो रहा। बताया जा रहा है कि जिला अस्पताल से निकलने वाले बॉयो वेस्ट के निस्तारण के लिए एक कंपनी को टेंडर दिया गया है, जिसका कार्य रोजाना मेडकल वेस्ट को एकत्र कर सुरक्षित निस्तारण करना है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
बता दें कि कुछ दिन पहले इस अस्पताल परिसर में जहां-तहां पीपीई किट फेके जा रहे थे। उसे भी पत्रिका ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। उसके बाद कुछ दिनों तक सब कुछ व्यवस्थित चला लेकिन उसके बाद अब फिर से स्थिति नारकीय हो गई है।