छह वर्ष बीते जिला सहकारी केंद्रीय बैंक को नहीं मिल पाए अध्यक्ष
प्रशासक के भरोसे सहकारी बैंक की कमान, ब्यवस्था बेपटरी, महीनों से नहीं हुई सहकारी बैंक की हालत की समीक्षा, कर्ज माफी की पूरी राशि न मिलने से लडख़ड़ाई बैंक की आर्थिक स्थिति
District cooperative central bank could not get chairman for six years
सीधी। किसानो को राहत देने के लिए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मुख्य बैंको मे शामिल है किंतु जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की माली हालत से लेकर प्रशासनिक ब्यवस्था पर सरकारों के द्वारा बीते छह वर्षों से ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसमें पुरानी भाजपा की तो कांग्रेस सरकार भी शामिल हैं, आलम यह है कि सहकारी केंद्रीय बैंक की अध्यक्ष की कुर्सी सहित संचालक मंडल की टीम बीते सात वर्ष से रिक्त पड़ी हुई है। कलेक्टर को बैंक का प्रशासक बनाया गया है, प्रशासन बनने के बाद तत्कालीन कलेक्टर विशेष गढ़पाले ट्रेक्टर घोटाले, केसीसी ऋण वितरण घोटाले सहित फर्जी नियुक्ती व पदोन्नति घोटाले मे उलझे रह गए किंतु बैंक की अर्थब्यवस्था को मजबूत बनाने की दिशा मे कोई प्रयास नहीं किया गया। भाजपा की सरकार बदली तो कांग्रेस की सरकार ने किसानो की कर्जमाफी कर बैंक की अर्थब्यवस्था को और भी खटाई मे डाल दिया है। कर्ज माफी का प्रमाण-पत्र तो वितरित कर दिया गया किंतु शासन के खजाने से कर्जमाफी की पूरी राशि केंद्रीय बैंक को नहीं दिए गए।
पूर्व अध्यक्ष के द्वारा मप्र की शिवराज सरकार की मंशा अनुरूप किसानो को शून्य ब्याज पर थोक के भाव मे केसीसी ऋण का वितरण कर दिया गया, किंतु किसानो ने निर्धारित समय मे कर्ज की राशि की अदायगी नहीं की गई, जिससे ब्याज की राशि जीरो प्रतिशत से बढकर प्रतिपक्ष १६ प्रतिशत से ज्यादा जा पहुंची आलम यह हुआ कि किसानो के द्वारा जितना मूलधन लिया गया था उससे ज्यादा ब्याज हो गया। इस बीच राजनीतिक दलो के द्वारा सरकार बनने पर किसानो का कर्ज माफी की घोषणा कर दी, जिसके कारण किसानो ने कर्ज की राशि चुकाना बंद कर दिया गया। इधर कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए कांग्रेस ने आनन-फानन मे किसानो को बैंको पर दवाब बनाकर ऋण माफी का प्रमाण-पत्र किसानो को थमाने का फरमान जारी कर दिया गया, विधिवत सभाओं का आयोजन कर कर्जमाफी का प्रमाण-पत्र तो किसानो को पकड़ा दिया गया किंतु उसके बदले बैंक को एक भी रूपए अभी तक नहीं मिल पाए हैं जिसके कारण बैंक की आर्थिक स्थिति और भी बदतर हो चुकी है। किसी तरह बैंक किसानो से कर्ज की राशि वसूल कर कर्मचारियो को बेतन का भुगतान करता था किंतु अब आने वाले समय मे कर्मचारियों को वेतन का भी लाले पडऩा लाजिमी है। वहीं बैंक अध्यक्ष सहित अन्य टीम का निर्वाचन न होने के कारण प्रशासक बैंक की ओर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, बैंक की स्थिति की प्रशासक के द्वारा समीक्षा की हो ऐसा हुए महीनो बीत चुका है।
कई मर्तवा निर्धारित हुई तिथि, किंतु स्थगित हो गया चुनाव-
जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष से लेकर संचालक मंडल का पद रिक्त पढ़ा हुआ है। जिसके लिए बीते सात वर्ष के अंदर तीन मर्तवा चुनाव तिथि भी घोषित की गई किंतु पूर्व मे भाजपा नेताओ की आपसी खीचमतान के कारण पार्टी संगठन के द्वारा आंतरिक तौर पर दवाब बनाकर चुनाव को स्थगित करा दिया गया, जिसके कारण बैंक मे मनमानी का आलम चल रहा है। वहीं भाजपा की सरकार बदलने के बाद भी कांग्रेस सरकार ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया अब उम्मीद की जा रही है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही सरकार सहकारी केंद्रीय बैंक के चुनाव को लेकर विचार करने की उम्मीद थी किंतु अभी भी चुनाव को लेकर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।