scriptआजादी के सात दशक बाद भी बिजली के प्रकाश को तरश रहे ताल के निवासी | Even after seven decades of independence, residents of Taal are cravin | Patrika News

आजादी के सात दशक बाद भी बिजली के प्रकाश को तरश रहे ताल के निवासी

locationसीधीPublished: Dec 06, 2019 01:41:06 pm

Submitted by:

Manoj Kumar Pandey

जिले के आदिवासी विकासखंड कुसमी के ताल गांव का मामला

Even after seven decades of independence, residents of Taal are cravin

Even after seven decades of independence, residents of Taal are cravin

सीधी/पथरौला। सरकार द्वारा भले ही प्रदेश के कोने-कोने मे राजीव गांधी विद्युतीकरण, सौभाग्य योजना सहित अन्य योजनाओं के तहत बिजली पहुंचाने की बात कही जा रही है। किंतु हकीकत पर गौर किया जाय तो आलम ये है कि आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां बिजली के प्रकाश को आजादी के सात दशक बाद भी ग्रामीण तरस रहे हैं।
ऐसा ही एक गांव जिले के आदिवासी बाहुल्य जनपद पंचायत कुसमी अंतर्गत ताल गांव है जो की प्रदेश सहित जिले के अंतिम छोर मे बसा हुआ है। इस गांव को छूकर प्रवाहित होने वाली मवई नदी प्रदेश की सीमा तय करती है। यहां निवासरत ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि वर्ष 2014 मे ग्रामीणों के विरोध के बाद सोलर प्लांट का काम शुरू किया गया था। और 2015 मे सोलर प्लांट से गांव मे रोशनी तो हुई लेकिन ये रोशनी ज्यादा दिनों तक टिक न सकी। और प्लांट मे लगाई गई 18 नग सोलर प्लेट अज्ञात व्यक्तियों के द्वारा रात मे निकाल ली गई। जिसकी सूचना भी पुलिस चौकी पोंड़ी मे दी गई थी। किंतु पुलिस द्वारा महज दो नग सोलर प्लेट ही बरामद की गई थी। और तभी से गांव मे फि र से अंधेरा छा गया। बताया गया कि बीच-बीच मे शिकायतें भी ग्रामीणों के द्वारा की जाती रही हैं। जिस पर मकैनिकों के द्वारा सुधार का प्रयास भी किया गया। लेकिन दो चार दिन बाद फि र वही हाल हो जाता था। अब स्थिति यह हो गई है बरसात की राते अंधेरे मे ही कटती हैं। गांंव के चारो तरफ जंंगल होने के कारण जहरीले कीडे मकोड़ों का डर हमेशा बना ही रहता है।
अंधेरे मे होती हैं शादियां-
गांव की महिलाओं ने बताया कि शादी व्याह के सीजन मे इस गांव की आदिवासी लड़कियों की शादी आज भी अंधेरे में ही संपन्न होती हंै। बताया गया कि इस गांव मे जनरेटर आदि मंगवाना भी काफ ी मंहगा पड़ता है। क्योंकि जनरेटर के किराया से ज्यादा वाहन का किराया लग जाता है। अत: लालटेन व चिमनी के प्रकाश ही काम चलाना पड़ता है। वहीं बेटो की शादी मे बिजली के उपकरण भी दहेज मे नहीं लिए जाते हैं। बताया कि आने जाने का किराया जोड़ दिया जाय तो इस गांव के लोगों को गेहूं की पिसाई तीन रुपये प्रति किलो पड़ती है।
ग्रामीणों ने की बिजली की मांग-
ताल के ग्रामीण आदिवासियों का कहना है कि हम लोगों के इच्छा के विपरीत यदि गांव मे सोलर प्लांट न लगाया गया होता तो अब तक हम लोगों को भी बिजली की सुविधा मिल जाती और ग्रामीणों को सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध हो जाती। ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि गांव के बगल से ही कुंदौर गांव के लिए विद्युत लाइन निकली है। उसी मेन लाइन से ताल गांव में भी विद्युतीकरण किया जा सकता है। बिजली की सुविधा मिल जाने से यहां के आदिवासियों की माली हालत मे सुधार हो सकता है। ग्रामीणों द्वारा विद्युतीकरण की मांग प्रशासन से की गई है।

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