scriptमैनेजमेंट की पढ़ाई और तैयार करने लगे रंगकर्मी, जानिए क्यों नितीश का पैशन बन गया थियेटर | Karmayogi Theater Group director Nitish Dubey in sidhi | Patrika News
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मैनेजमेंट की पढ़ाई और तैयार करने लगे रंगकर्मी, जानिए क्यों नितीश का पैशन बन गया थियेटर

र्मयोगी थिएटर ग्रुप के नितीश दुबे ने कहा-समाज को इंसानियत व इमानदारी की सीख देता है थियेटर

सीधीFeb 10, 2019 / 03:53 am

Sonelal kushwaha

Nitish Dubey  Karmayogi Theater Group

Nitish Dubey Karmayogi Theater Group

सीधी. मैनेजमेंट में डिप्लोमा कर थियेटर को बतौर कॅरियर चुनने वाले नितीश दुबे कहते हैं, रंगमंच समाज निर्माण की अहम धुरी है। बताया कि भोपाल के चर्चित कॉलेज से जब मैं बीबीए की शिक्षा पूरी कर थियेटर का रुख किया तो पिता जी बोले, जब नाटक-नौटंकी ही करनी थी तो बीबीए क्यों किया। और यही करना है तो मुंबई जाकर फिल्म इंडस्ट्री में हाथ अजमाओ, लेकिन मैंने कहा, मुझे फिल्म नहीं थियेटर ही करना है। उन्होंने बताया कि सिनेमा समाज को चतुर और चालाक बनाता है, जबकि थिएटर उसे इंसानियत व ईमानदारी की सीख देता है।
नितीश ने बताया कि रंगकर्म की राह थोड़ी संघर्षभरी जरूर है, लेकिन इसमेें जो सुकून मिलता है, शायद वह अन्य जगह नहीं मिल सकता। शुरुआत में बतौर पारिश्रमिक मुझे सिर्फ ५०० रुपए मिलते थे। लेकिन आज मैं खुश हूं कि कर्मयोगी थिएटर ग्रुप के जरिए सैकड़ों लोगों को नाटक व लोक कला की बारीकियां सिखा रहा हूूं। इससे जहां लोगों को अपनी प्रतिभा निखारने के लिए एक मंच मिल रहा है, वहीं हमारी विलुप्त होती लोककलाएं भी संरक्षित हो रही हैं।
नितीश ने कहा, रंगकर्मियों ने पौराणिक धरोहर सहेजने की दिशा में काफी कार्य किया है। कर भी रहे हैं। नेता और जनप्रतिनिधियों भी कई बार इन्हीं रंगकर्मिंयों के माध्यम से लोक कलाओं की प्रस्तुति कराते हैं। उंचे-उंचे भाषण देते हैं, लेकिन एक रंगकर्मी अपने पेट की आग को किस तरह मिटा रहा है इस पर ध्यान किसी का नहीं जा रहा है।
6 हजार में भी कटौती
आज से दस वर्ष पहले जब मैं थिएटर की दुनिया में आया तब भी 6 हजार रुपए का मासिक अनुदान मिलता था और 10 वर्ष बाद भी 6 हजार रुपए ही मिल रहे हैं। थिएटर के संचालक साल भर में मिलने वाले ७२ हजार रुपए में भी कटौती कर लेते हैं ५० से ६० हजार रुपए ही देते हैं। अब इस महंगाई के दौर में हम कैसे अपना व अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं यह दर्द रंगकर्मी ही समझ सकता है। आज के दौर में महंगी गाडिय़ों से फर्राटे भरने का सौक शहरुख खान जैसे कलाकारों को है हम जैसे रंगकर्मी के लिए यह एक सपना होता है।
महाउर महासंगम है
महाउर महोत्व के संदर्भ में नितीश ने कहा, सीधी जैसे छोटे शहर में सीमित संसाधनों के बीच महाउर महोत्सव काबिले तारीफ है। देश के हर कस्बे, शहर को प्रेरणा लेनी चाहिए। महाउर एक महासंगम है यहां पर समस्त रंगसागर आते हैं और डुबकी लगाते हैं। रंगकर्मी नितीश दुबे ने खुद से लिखे नाटकों की प्रस्तुति मप्र के अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, उड़ीसा और राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों में प्रस्तुति दे चुके हैं। अब वे सिंगापुर और बंग्लादेश में भी नाटकों की प्रस्तुति करने की तैयारी में जुटे हैं।
खुद तैयार करते हैं स्क्रिप्ट व निर्देशन भी
रंगकर्मी नितीश एक दर्जन से ज्यादा नाटकों का रूपांतरण, निर्देशन व लेखन कर मंचों में प्रस्तुतियां दे चुके हैं। इनमें नाटक चंद्रलोक, पथिका, स्वप्नलोक, रंगरसिया, चैतन्य लीला, कृष्ण कंस वध से नाटक हैं। इसके अलावा बाल नाटकों में मेवा हांडी, पंचपरमेश्वर, गूंगी, सिमसिम कोला, पेंसिल बाक्स, ईदगाह, बाबू, अवंतीबाई, आजादी की लौ सहित अन्य नाटक शामिल हैं। नाटक के अलावा नितीश मूक अभिनय, उलझन, बुद्धा डेक्सन, रामायण का मंचन भी कर चुके हैं। सिद्धार्थ, डेजेट ब्लूम, दशक अवतार, नर्सिंग, सीता स्वंबर, भीष्म प्रतीक्षा, एकलव्य जैसे विषयों पर नृत्य नाटिका का भी प्रदर्शन कर चुके हैं।
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