आज से दस वर्ष पहले जब मैं थिएटर की दुनिया में आया तब भी 6 हजार रुपए का मासिक अनुदान मिलता था और 10 वर्ष बाद भी 6 हजार रुपए ही मिल रहे हैं। थिएटर के संचालक साल भर में मिलने वाले ७२ हजार रुपए में भी कटौती कर लेते हैं ५० से ६० हजार रुपए ही देते हैं। अब इस महंगाई के दौर में हम कैसे अपना व अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं यह दर्द रंगकर्मी ही समझ सकता है। आज के दौर में महंगी गाडिय़ों से फर्राटे भरने का सौक शहरुख खान जैसे कलाकारों को है हम जैसे रंगकर्मी के लिए यह एक सपना होता है।
महाउर महोत्व के संदर्भ में नितीश ने कहा, सीधी जैसे छोटे शहर में सीमित संसाधनों के बीच महाउर महोत्सव काबिले तारीफ है। देश के हर कस्बे, शहर को प्रेरणा लेनी चाहिए। महाउर एक महासंगम है यहां पर समस्त रंगसागर आते हैं और डुबकी लगाते हैं। रंगकर्मी नितीश दुबे ने खुद से लिखे नाटकों की प्रस्तुति मप्र के अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल, उड़ीसा और राजस्थान सहित विभिन्न राज्यों में प्रस्तुति दे चुके हैं। अब वे सिंगापुर और बंग्लादेश में भी नाटकों की प्रस्तुति करने की तैयारी में जुटे हैं।
रंगकर्मी नितीश एक दर्जन से ज्यादा नाटकों का रूपांतरण, निर्देशन व लेखन कर मंचों में प्रस्तुतियां दे चुके हैं। इनमें नाटक चंद्रलोक, पथिका, स्वप्नलोक, रंगरसिया, चैतन्य लीला, कृष्ण कंस वध से नाटक हैं। इसके अलावा बाल नाटकों में मेवा हांडी, पंचपरमेश्वर, गूंगी, सिमसिम कोला, पेंसिल बाक्स, ईदगाह, बाबू, अवंतीबाई, आजादी की लौ सहित अन्य नाटक शामिल हैं। नाटक के अलावा नितीश मूक अभिनय, उलझन, बुद्धा डेक्सन, रामायण का मंचन भी कर चुके हैं। सिद्धार्थ, डेजेट ब्लूम, दशक अवतार, नर्सिंग, सीता स्वंबर, भीष्म प्रतीक्षा, एकलव्य जैसे विषयों पर नृत्य नाटिका का भी प्रदर्शन कर चुके हैं।