लालटेन और मशाल की रोशनी में शादी-ब्याह होते हैं। छत्तीसगढ़ के नेटवर्क मिलने के कारण ग्रामीण सीएम हेल्पलाइन में शिकायत नहीं कर पाते। इसलिए पेड़ पर चढ़कर मध्यप्रदेश सर्किल का मोबाइल नेटवर्क पकड़ते हैं।
विडम्बना ऐसी है कि मोबाइल चार्ज करने और गेहूं पिसवाने के लिए 6 किमी दूर छत्तीसगढ़ के गांव जाना पड़ता है। गांव में करीब 150 घर में 500 लोग रहते हैं। 98% आदिवासी परिवार हैं। ग्रामीण बताते हैं, वर्ष 2014 में विरोध के बीच गांव में सोलर प्लांट का काम शुरू हुआ था।
2015 में प्लांट चालू होने से गांव में पहली बार बिजली आई, लेकिन ये रोशनी ज्यादा दिन तक टिक न सकी। प्लांट में लगाई गई 18 नग सोलर प्लेट चोरी हो गईं। इसके बाद दोबारा गांव में बिजली नहीं आई।
एक सीजन में होती है खेती
ताल गांव में 200 आदिवासी परिवार हैं, जो खेती के लिए बारिश पर आश्रित हैं। बिजली न होने से सिंचाई की व्यवस्था नहीं है, जबकि गांव की सीमा से ही मबई नदी निकलती है। यदि गांव में बिजली पहुंचे तो किसानों के दिन खेती से बहुर सकते हैं।
बाहर से आए लोगों को देखते ही गांव के संजीव सिंह का दर्द छलक पड़ता है। वे कहते हैं, शादी-ब्याह का समय है। आसपास के गांवों में शादी के दिन बिजली की चकाचौंध रहती है। हमारे गांव में बेटियों की शादी चिमनी व मशाल की रोशनी से होती है। बच्चे पूछते कि गांव में बिजली कब आएगी तो जवाब तक नहीं दे पाते।
ग्रामीण बाजार, स्वास्थ्य, शिक्षा, डीजल, पेट्रोल एवं नेटवर्किंग जैसी सुविधाओं के लिए पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के जनकपुर गांव पर आश्रित हैं। गांव के लोग बेटे की शादी में उपहार में बिजली के उपकरण नहीं लेते। सरपंच रंगीला बाई सिंह कहती हैं, सात दशक बाद भी बिजली नहीं पहुंचने से खेती करने में भी परेशानी होती है।