scriptटैक्सी परमिट की जगह प्राइवेट नंबर वाहन का अधिकारी कर रहे उपयोग | Officers are using private numbers instead of taxi permits | Patrika News

टैक्सी परमिट की जगह प्राइवेट नंबर वाहन का अधिकारी कर रहे उपयोग

locationसीधीPublished: Aug 24, 2019 07:57:01 pm

Submitted by:

op pathak

अधिकारी खुद नियमो का नहीं कर रहे पालन, टैक्सी परमिट की जगह प्राइवेट नंबर वाहन का अधिकारी कर रहे उपयोग, अपर कलेक्टर से लेकर अन्य अधिकारियों के द्वारा प्राइवेट नंबर वाहन का कर रहे उपयोग

adm car

अपर कलेक्टर से लेकर अन्य अधिकारियों के द्वारा प्राइवेट नंबर वाहन का कर रहे उपयोग

सीधी। जिले के अधिकारी ही परिवहन के नियमों को मखौल उड़ा रहे हैं। जिला मुख्यालय पर सरकारी कार्यालय में अधिकारियों की खिदमत में लगे हुए अधिकतर वाहन नियमों के विरुद्ध बिना टैक्सी परमिट के लगे हुए हैं। इससे यातायात के नियमों का उल्लंघन तो हो ही रहा है, साथ ही परिवहन विभाग को राजस्व की हानि भी हो रही है।
ऐसे सरकारी विभाग जिनके पास खुद के वाहन नहीं है ऐसे विभागों में अधिकारियों की सुविधा के लिए सरकारी खर्चे पर किराए के चार पहिया वाहन लगाए जाते हैं। परिवहन विभाग के नियमों के क्रम में सरकारी विभागों में किराए पर उन्हीं वाहनों को रखा जाता है जिनका परिवहन विभाग से टैक्सी परमिट स्वीकृत हो। यह नियम जिला मुख्यालय से लेकर जनपद पंचायतो तक में केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं। इसका मुख्य कारण है कि जिले के आला अधिकारी ही लग्जरी गाडिय़ों में घूमने के चक्कर में नियमों को अनदेखा कर रहे हैं। जिला मुख्यालय पर स्थित ऐसे दर्जनों विभाग हैं, जिनके अधिकारी बिना टैक्सी परमिट की गाडिय़ों में घूम रहे हैं।
इसकी हकीकत सामने लाने के लिए पत्रिका टीम ने कलेक्ट्रेट व जिला पंचायत के कुछ अधिकारियों के वाहनों जिन पर मध्य प्रदेश सरकार व भारत सरकार अथवा अधिकारी का पद लिखा हुआ था, ऐसे वाहनों के क्रमांक को कैमरे मे कैद किया गया। यहां तक कि एक अधिकारी अपनी पर्सनल कार मे नंबर प्लेट की जगह अपना पदनाम ही अंकित कराए देखा गया। जब अधिकारी ही नियमो का पालन करना मुनासिब नहीं समझ रहे हैं तो आम जन से क्या उम्मीद की जा सकती है।
अपर कलेक्टर सहित डीईओ के वाहनो का नहीं है टैक्सी परमिट-
पत्रिका की पड़ताल में सामने आया कि अपर कलेक्टर द्वारा सरकारी खर्चे पर उपयोग की जा रही लग्जरी कार जिसका क्रमांक एमपी ५३ सीए ४०७६ है, इसका भी टैक्सी परमिट पास नहीं है। इसी तरह जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा शासकीय वाहन होने के बाद भी प्राइवेट टीयूभी वाहन का अधिग्रहण किया गया है। इस वाहन का भी टैक्सी परमिट नहीं है। इसके साथ ही अन्य अधिकारियो के द्वारा बिना टैसी परमिट वाहन का खुलेआम उपयोग कर रहे हैं।
कारनामे उजागर होने का भी होता है डर-
नियमों को दरकिनार करते हुए बिना टैक्सी परमिट के वाहनों को किराए पर रखने के पीछे कई कारण होते है। कई अधिकारी व विभागों के लिपिक अपने खुद के व रिश्तेदारों के वाहनों को विभाग में किराए पर लगाए हुए हैं। इससे अधिकारियों द्वारा किए जाने वाले कारनामे भी छिपे रहते हैं। बाहरी व्यक्ति के आने से कारनामे उजागर होने का डर बना रहता है। यही कारण है कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया जाता है।
२०१४ से लगाया गया है प्रतिवंध-
बता देें कि शासन ने 2014 से सभी विभागों में टैक्सी वाहन लगाने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद भी जिला अधिकारियों ने 50 से अधिक निजी वाहन लगा रखे हैं। जबकि निजी वाहन अपने उपयोग में ले सकते हैं। ना कि किसी कार्यालय में लगा सकते हैं। कार्यालय में लगाना है तो उसका टैक्सी में पास होना आवश्यक होता है। अधिकारियों एवं वाहन मालिकों की साठगांठ के चलते निजी वाहनों को विभागों के कार्य के लिए लगाया गया है। निजी वाहन जिला पंचायत, महिला बाल विकास, आबकारी, जनपद पंचायत, जिला पंचायत सहित अन्य विभाग में लगे हुए हैं।
एक से डेढ़ हजार रुपए तक जमा करना पड़ता है शुल्क-
यदि चार पहिया वाहन को टैक्सी में पास कराते हैं तो करीब गाड़ी की कीमत से करीब 8 से 9 प्रतिशत टैक्स जमा करना होता है। साथ ही रजिस्ट्रेशन फीस करीब 3 से 4 हजार रुपए, उसके उपरांत हर साल गाड़ी की फिटनेस करानी होती है। जिसमें करीब एक से डेढ़ हजार तक शुल्क जमा करना होता है। जबकि परमिट व फिटनिस की राशि बचाने के लिए टैक्सी परमिट नहीं लिया जा रहा है।
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