script

कैदी बने कलाकार, प्रस्तुत किए नाटक

locationसीधीPublished: Oct 14, 2019 08:14:36 pm

Submitted by:

Manoj Kumar Pandey

जिला जेल पडऱा मेें हुआ नाटक चरणदास चोर का मंचन, जिला जेल में आयोजित 21 दिवसीय प्रस्तुति पर नाट्य कार्यशाला का हुआ समापन, बाल्मीकि जयंती पर हुआ आयोजन

Prisoner cast, presented drama

Prisoner cast, presented drama

सीधी। बाल्मीकि जयंती के अवसर पर जिला जेल पडऱा सीधी में कैदियों द्वारा नाटक चरणदास चोर का मंचन किया गया। इस अवसर पर जिला जेल में बंद कैदी स्वयं कलाकार बने और नाटक के पात्र बनकर मंचन किया। इन कैदियों को इंद्रवती नाट्य समिति एवं एक्स्ट्रीम आर्ट एंड एजुकेशनल सोसायटी द्वारा 21 दिवसीय प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला के तहत प्रशिक्षण दिया गया था। जिसका समापन रविवार को किया गया, जहां प्रशिक्षित कैदियों द्वारा नाटक की शानदार प्रस्तुति दी गई। समापन अवसर पर मुख्य रूप से जेल अधीक्षक कुलवंत सिंह धुर्वे, जेलर संजीव गोंदले, अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के जिलाध्यक्ष राकेश दुबे, अधिवक्ता अंबुज पांडेय, बाबूलाल कुंदेर, रामनरेश सिंह, पुष्पराज सिंह रिंकू, आशीष पांडेय, मनोज कुमार मिश्रा उपस्थित रहे।
नाटक चरणदास चोर विजयदान देथा की लोककथा के आधार पर हवीब तनवीर लिखा व मंचन किया था, जो विश्व प्रसिद्ध हुआ था। इसी नाटक को बघेली भाषा में रूपांतरित कर प्रस्तुति दी गई। नाटक की कहानी कुछ इस प्रकार है कि चरणदास चोर नाम का पात्र एक बहुत ही शातिर चोर था जो लगातार चोरी की वारदातें करता था, एक दिन वह एक फक्कड़ साधू की शरण में पहुंच गया, और मजाक-मजाक में साधू को चार वचन देता है कि मैं कभी सोने की थाली में नहीं खाऊंगा, मैं कभी घोड़े हांथी के लश्कर के साथ नहीं चलूंगा, मैं कभी रानी के साथ शादी करूंगा और न ही किसी देश का राजा बनंूंगा। लेकिन गुरू ने कहा कि ये घटनाएं कभी तुम्हारे जीवन में घटेंगी नहीं, इसलिए तुम यह वचन दो कि कभी झूठ नहीं बोलूंगा, साधू के कहने पर वह उनकी बात मान गया और जीवन में कभी झूठ नहीं बोलने का संकल्प लेकर चला गया। परंतु उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटी की वह रानी का जेवर चुरा लिया और पकड़ा गया, जहां पूंछतांछ के दौरान उसने सारी सच्चाई उगल दी, उसकी सच्चाई सुनकर रानी प्रभावित हुई और उसने विवाह का आमंत्रण दिया, लेकिन साधू को दिए गए वचन के आधार पर मना कर दिया, तब रानी ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हे छोड़ दूंगी लेकिन तुम बाहन जाकर यह किसी को नहीं बताना की रानी ने विवाह का प्रस्ताव दिया था, तब चरणदास चोर ने कहा कि मैंने साधू को वचन दिया था कि कभी झूठ नहीं बोलूंगा, इसलिए किसी के पूंछने पर मैं सच्चाई नहीं छिपा पाऊंगा, तब रानी ने चरणदास चोर को मरवा दिया। यह नाटक ने यह शिक्षा दी की सदैव सच बोलना चाहिए और अपने वचन का पालन करना चाहिए। नाटक में सभी पात्रों की भूमिका में कैदी ही रहे जिसमें रतन कुशवाहा, विद्यानंद पासवान, शिवकुमार सिंह गोड़, विष्णु गुप्ता, रामरहीश गुप्ता, उमेश पटेल, मोह.राशिद, प्रमोद कुमार साकेत, लक्ष्मण सिंह बड़करे, मोह.हलीम, विनोद कुमार पनिका, महेंद्र कुमार लोनी, करण रावत, उमेश कुमार साकेत, भैयालाल लोनी, पुष्पराज रावत, शिवशंकर साकेत, राजभान सिंह, आशीष सिंह, विश्वनाथ साकेत, जीतेंद्र लोनी शामिल रहे। नाटक का निर्देशन रोशनी प्रसाद मिश्रा, सह निर्देशक करूणा सिंह, संगीत नरेंद्र सिंह, अभिनय प्रशिक्षण रजनीश जायसवाल, कार्यशाला प्रबंधन नीरज कुंदेर, मंच व्यवस्था आशीष पांडेय, वस्त्र विन्याश रूपेश मिश्रा, प्रजीत साकेत व संतोष द्विवेदी का रहा।
महिला कैदियों ने गाए लोकगीत-
कार्यशाला के दौरान जिला जेल की महिला कैदियों को भी लोक गायन का प्रशिक्षण दिया गया था, जिनके द्वारा कार्यशाला के समापन अवसर पर लोकगीतों की प्रस्तुति दी गई। महिला कैदियों को प्रशिक्षण करूणा सिंह व शिवांगी मिश्रा द्वारा दिया गया था। प्रस्तुति देने वाली महिला कैदियों में सुनीता यादव, संगीता रजक, विमलेश रावत, रामकली वैश्य, सुशीला रावत, मुन्नीबाई रावत, सुनीता रावत, रन्नू कुशवाहा, रनिया साहू आदि शामिल रहे।

ट्रेंडिंग वीडियो