गीतांजलि त्रिपाठी सीधी में आठवीं तक की पढ़ाई करने के बाद भोपाल चली गई थी। वे पिछले दो वर्षों से एसएसबी में नौकरी कर रही हैं। गीतांजलि के पिता विनोद त्रिपाठी बताते हैं कि आठवीं की पढ़ाई करने के दौरान ही गीतांजलि वुशू सीखने लगी थी। इसके बाद वह भोपाल चली गई और लगातार अभ्यास करती रही। अब जार्जिया में स्वर्ण पदक जीती। यह स्वर्ण पदक देश के लिए है।
जार्जिया में प्रियंका केवट ने भी गोल्ड मेडल जीता है। प्रियंका के पिता शिवराज केवट एक निजी अस्पताल में काम करते हैं और मां एक निजी स्कूल में प्यून हैं। प्रियंका को पिछले 12 वर्षों से वुशू का अभ्यास करानेवाले मानवेंद्र शेर अली खान ने बताया कि प्रियंका ने गरीबी से जूझते हुए ये मुकाम हासिल किया है।
प्रियंका केवट का 48 केजी वर्ग में तथा गीतांजलि त्रिपाठी का 56 केजी वर्ग में चयन हुआ- वुशु के लिए लगातार अभ्यास करने और समय देने में उसके घरवालों ने बराबर उसका साथ दिया. खेल के लिए कभी आर्थिक अभाव बाधा नहीं बनने दिया जिसका नतीजा यह रहा कि वह देश के लिए स्वर्ण पदक जीत सकी. जार्जिया में गोल्ड मेडल जीतकर देश के साथ मध्यप्रदेश और सीधी का नाम रोशन करनेवाली इन बेटियों पर शहरवासियों ने गर्व जताया है। प्रियंका केवट का 48 केजी वर्ग में तथा गीतांजलि त्रिपाठी का 56 केजी वर्ग में चयन हुआ था।