वहीं जिम्मदारों के ध्यान नहीं देने से व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आ पा रही हैं। जिला अस्पताल में आए दिन विवाद होते रहते हैं। अस्पताल प्रबंधन डॉक्टरों की कमी का रोना रोता रहता है, लेकिन यहां वर्तमान में तीन दर्जन से अधिक डॉक्टर पदस्थ हैं। इसके बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं का मरीजों को बेहतर लाभ नहीं मिल पा रहा है। विशेषज्ञ डॉक्टरों को सिर्फ ओपीडी में ही मरीजों को देखना होता है। यहां सुबह 8 बजे से दोपहर तीन बजे तक ओपीडी लगती है। इस दौरान भी मरीज भटकते रहते हैं। इसके बाद क्लास वन डॉक्टरों की आन काल ड्यूटी लगाई जाती है।
इसमें भी कुछ डॉक्टर ऐसे हैं जो ऑन काल ड्यूटी नहीं करते। ऐसे में जिला अस्पताल का अधिकांश काम द्वितीय श्रेणी के डॉक्टरों पर रहता है। इमरजेंसी में एक ही डॉक्टर तैनात की हालत बिगड़ने पर उसे देखने जाना होता है। जिला अस्पताल में अलग कोई विवाद होता है तो वह सबसे ज्यादा इमरजेंसी में होता है। यह भी देखने मे आया है कि इमरजेंसी ड्यूटी पर डॉक्टर के वार्ड में जाने पर यहां के मरीज परेशान होते हैं और विवाद की स्थिति बनती है। ऐसे में वार्ड के इमरजेंसी के लिए अलग व्यवस्था की मांग की जा रही है। जिसमें विशेषज्ञ डॉक्टरों की ड्यूटी लगाई जाए। बावजूद इसके अस्पताल प्रबंधन व्यवस्था बेहतर रहते हैं। ऐसे में वार्ड में भर्ती मरीज नहीं बना पा रहा है।
शाम पांच से छह बजे की ओपीडी ठप
जिला अस्पताल में सुबह 8 से दोपहर तीन बजे तक ओपीडी लगती है। ओपीडी के दौरान मरीज अधिकांश डॉक्टरों के इंतजार में भटकते रहते हैं। लोगों को यह नहीं मालूम कि शाम पांच से छह बजे के बीच भी ओपीडी का प्रावधान है। जिला अस्पताल में शाम पांच से छह बजे लगने वाली ओपीडी को लेकर भी डॉक्टर ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिससे शाम की एक घंटे की ओपीडी ठप जैसी हो गई है। विभागीय अधिकारी लापरवाह चिकित्सको पर शिकंजा नहीं कस पा रहे हैं।
अधिकारियों की तैनाती भी बेकार
चिकित्सकों की लगातार मिल रही शिकायतों को लेकर कलेक्टर द्वारा अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई थी कि वे रोजाना चिकित्सालय जाकर चिकित्सकों की उपस्थिति पर नजर रखेंगे किंतु यह सिस्टम भी चंद दिनों के बाद बेकार हो गया। अब अधिकारी चिकित्सालय पहुंचते ही नहीं जिससे फिर चिकित्सक पुराने ढर्रे पर ही काम कर रहे हैं।