सीधी

अभी तक कालेजों में नही बन पाए जनभागीदारी अध्यक्ष

अभी तक कालेजों में नही बन पाए जनभागीदारी अध्यक्ष, एक वर्ष से खाली पड़ी है कुर्सी, प्राचार्यो की व्यवस्था को लेकर बनी मनमानी

सीधीJan 23, 2020 / 05:33 pm

op pathak

सीधी। प्रदेश में सरकार बदलने के साथ ही सीधी जिले के शासकीय महाविद्यालयों की जनभागीदारी अध्यक्षों को नए सिरे से कुर्सी में बैठाने की कार्रवाई नही हो सकी। लिहाजा नया शैक्षणिक सत्र आरंभ होने के साथ ही अब समापन में भी कुछ महीने का समय ही बचा है और जनभागीदारी अध्यक्ष की नियुक्ती न होने से प्राचार्यो की मनमानी व्यवस्था बनाने को लेकर बनी हुई है। स्थिती यह है कि कई प्राचार्य मनमानी निर्णय ले रहे है और उनके इस निर्णय से महाविद्यालय का भले ही भला न हो लेकिन उनकी स्वार्थसिद्धी हो रही है। सबसे ज्यादा ऊहापोह की स्थिती अग्रणी महाविद्यालय संजय गांधी स्वशासी महाविद्यालय एवं कन्या महाविद्यालय की है। यहां भारी भरकम वजट हर साल व्यवस्थाओं के संचालन के लिए आता है और जनभागीदारी अध्यक्ष इस सत्र में नियुक्त न होने से प्राचार्यो द्वारा भी अपनी मनमानी जारी रखी गई है। जिसको लेकर कई शिकायतें भी हो चुकी है लेकिन जांच करने की जरूरत भी नही समझी गई। महाविद्यालयीन सूत्रों के अनुसार संजय गांधी महाविद्यालय के स्वशासी होने के कारण इसको हर वर्ष करोड़ों का वजट विभिन्न मदों से प्राप्त होता है। फिर भी महाविद्यालय में संचालित कक्षाओं में छात्र-छात्राओं के बैठने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्थाएं नही है। स्नातक कक्षाओं में छात्र संख्या काफी ज्यादा होने के बाद भी एक ही कक्ष में सैकड़ों छात्रों को रखा जा रहा है। जिससे छात्रों को बैठने के लिए कुर्सी तक नही मिल पाती। कक्षा में कुर्सी पाने के लिए छात्रों को समय से पहले पहुचना पड़ता है यदि कुछ विलंब हुआ तो कक्षाएं भले ही संचालित हो जाए लेकिन बाद में आने वाले छात्रों को अंतिम तक खड़े ही रहना पड़ता है। तत्संबंध में प्राध्यापको का भी कहना है कि छात्रों की संख्या प्रत्येक सत्र में काफी ज्यादा बढ़ रही है। लेकिन उस हिसाब से बनाई गई व्यवस्थाएं अब कम पड़ चुकी है। कक्षा के अंदर निर्धारित कुर्सियां आ सकती है। छात्रों की संख्या ज्यादा हो जाने के कारण ज्यादा कुर्सियां नही रखी जा सकती। यह अवश्य है कि महाविद्यालय में कुछ अतिरिक्त कक्ष निर्माण के लिए वजट का आवंटन मिले तो बड़े हाल की सुविधा मिल जाने के बाद यह समस्या दूर हो सकती है।
खींचतान में नही हो सकी नियुक्ती-
शासकीय महाविद्यालयों में जनभागीदारी अध्यक्ष की नियुक्ती न हो पाने का प्रमुख कारण सत्ता पक्ष से कई दावेदारों का होना है। इनमें कई महिलाएं भी अध्यक्ष पद को लेकर अपनी दावेदारी लगातार कर रही है। कई दावेदार तो अपनी नियुक्ती को लेकर महीनो से भोपाल तक दौड़ धूप करते हुए मायूस हो चुके है। कांग्रेस संगठन के नेता एवं जनप्रतिनिधि भी दावेदारों की बढ़ती संख्या के कारण खुलकर कोई पहल नही कर पा रहे है। दावेदारों की भीड़ के चलते ही प्रदेश सरकार द्वारा भी इस संबंध में हरी झंडी नही दिखाई गई है। फिर भी माना जा रहा है कि बड़े नेताओं द्वारा इस मामले में अब गंभीरता से विचार किया जा रहा है। कुछ समय के बाद ही जनभागीदारी अध्यक्ष पद पर भी नियुक्ती हो सकेगी। यह जानकारी सामने आते ही जनभागीदारी अध्यक्ष पद को लेकर कई दावेदार फिर से सक्रिय हो चुके है। इनके द्वारा नेताओं के आगे पीछे दौडऩा भी शुरू कर दिया गया है।

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