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सर्कस का शेर बनकर न रह जाए कहीं कलाकार: रंगकर्मी संजय सपकाल

locationसीधीPublished: Nov 13, 2017 01:00:45 pm

Submitted by:

suresh mishra

कमीशन भी कम नहीं, तीन दर्जन नाटकों में एक्टिंग-निर्देशन कर चुके हैं संजय

Theater artist Sanjay Sapkal Discuss in sidhi Stage

Theater artist Sanjay Sapkal Discuss in sidhi Stage

सीधी। थिएटर की कोई पौराणिक परंपरा नहीं है, जिन महानगरों में थिएटर की परंपरा रही है, उन महानगरों में सीधी का एक तिहाई रंगमंच नहीं हो पा रहा है। जब मैंने सुना कि सीधी में 51 दिन के बाद 111 दिन का थिएटर हुआ तब सीधी के रंगमंच को जानने, समझने की लालसा झकझोरनी लगी। और खुद को यहां आने से रोक नहीं सका। यह कहना है रंगकर्मी संजय सपकाल का। पत्रिका कार्यालय में हुई लंबी चर्चा के दौरान उन्होंने जीवन के अनुभव साझा किए।
संजय का जन्म महाराष्ट्र के पूना शहर मे हुआ। जहां वे रंगमंच से वाकिफ होते रहे किंतु पूना मे रहकर कभी थिएटर में किश्मत नहीं आजमाए। नौकरी की तलाश में मप्र के इंदौर शहर पहुंचे, जहां नौकरी के साथ वे थिएटर से जुड़ गए। आठ घंटे की नौकरी तो चार घंटे रोजाना थिएटर को दे रहे हैं। 16 वर्ष से मंच पर अभिनय विखेरते हुए तीन दर्जन से ज्यादा नाटकों में अभिनय व निर्देशन की जिम्मेदारी संभाल चुका हूं।
मतलब के लिए लोग कर रहे थिएटर का उपयोग
संजय ने बताया कि बड़े शहरों में थिएटर की परिपाटी रही है। यहां थिएटर होते रहे हैं, किंतु वर्तमान में थिएटर का उपयोग मतलब के लिए होने लगा है। कुछ लोग छोटे-छोटे थिएटर बनाकर उसे राजनीति या अन्य स्वार्थ के लिए उपयोग कर रहे हैं। जबकि, थिएटर का वास्तविक विकास तभी संभव है, जब कला और कलाकार के कब्जे में थिएटर हो। कलाकार इशारे पर नाच नहीं सकता, ऐसा करने पर उसकी कला लुप्त हो जाएगी और वे सिर्फ सर्कस का शेर बनकर रह जाएगा। और यह न सिर्फ कला जगत बल्कि समाज के लिए भी खतरनाक है।
मन हल्का कर देता है थिएटर
तनावमुक्त रहने के लिए थिएटर से बेहतर साधन कुछ नहीं है। समाज व देश के परिदृश्य को लेकर मेरे मन में बहुत सारे विचार थे। लेकिन महसूस हुआ कि मैं लोगों को इनसे संतुष्ट नहीं कर पा रहा। लिहाजा, थिएटर का सहारा लिया और इसी के माध्यम से समाज को अपना संदेश भी देता हूं। थिएटर मनारंजन के साथ-साथ अध्यात्म के लिए भी बेहतर प्लेटफार्म है।
इन नाटकों के लिए किया अभिनय
रंगकर्मी संजय सपकाल ने तीन दर्जन से ज्यादा नाटको मे अभिनय कर चुके हैं। जिसमे मराठी नाटक तो मुंकुदसालिगग्राम, माधा नकोसा झालेमा देशा अर्थात कहानी क्रांति का कीड़ा सहित अन्य नाटकों का निर्देशन करने के साथ नाटक विदूषक, तरुण तुर्क रे अर्क, दीपस्तंभ, शांतना कोर्ट चालू है, ऊपोनसिया सहित अन्य नाटकों मे वे अभिनय किए हैं।
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