अधिकांश पेड़ नष्ट हो गए हैं। यह आग नौढ़िया गांव के आसपास से भड़की थी जो धीरे-धीरे दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्र की ओर आगे बढ़ती गई। जिस पर काबू पाने के लिए किसी तरह का प्रयास नहीं किया जा रहा है। जंगल में रह रहे कई जानवरों के मरने की भी आशंका जताई जा रही है।
मेहनत पर फिरा पानी
बीते कई वर्षों से जंगल में अलग-अलग प्रजाति के पौधे रोपे जा रहे थे। अब आग ने इतना विकराल रूप ले लिया कि वन विभाग की मेहनत पर पानी फिर गया, साथ ही लाखों रुपए जो खर्च किए गए थे वह भी व्यर्थ हो गया है। बताया गया है कि वर्ष 2014-15 में पांच हेक्टेयर में सागौन के 10 हजार पौधे रोपे गए थे। इसी तरह बांस एवं अन्य प्रजातियों के करीब 20 हजार पौधों का अलग से रोपण हुआ था। वर्ष 201 में तीन हेक्टेयर में 15 हजार सागौन के पौधे, एक हेक्टेयर में बांस के 5 हजार पौधे रोपे गए थे। 2018 में चार और पांच हेक्टेयर के अलग-अलग भागों में करीब 20 हजार से अधिक की संख्या में पौधे रोपित किए गए थे। हाल के वर्षों में लगाए गए ये पौधें जलकर नष्ट हो गए हैं, अब नए सिरे से पौधरोपण का कार्य करना पड़ेगा।
आग की घटनाओं को रोकने में नाकामी
वन विभाग के पास सेटेलाइट से आग की घटनाओं पर तत्काल अलर्ट मिलता है लेकिन विभाग के अधिकारियों द्वारा समय पर मौके पर अमला भेजने में उदासीनता के कारण आग बड़े हिस्से को चपेट में ले लेती है। डेम्हा घाटी में इसके पहले कई बार जंगल में आग लगी और भारी नुकसान होता रहा है। यहां पर जानवर भी रहते हैं जो आगजनी के दौरान गांवों की ओर भागते हैं और बेमौत मारे जाते हैं। दो साल पहले भी आग लगी थी लेकिन उस दौरान स्थानीय लोगों द्वारा दी गई सूचनाओं को तत्कालीन डीएफओ ने गंभीरता से नहीं लिया था।