10 साल पुराने जमीनी विवाद का दावा खारिज, सिंघम जज ने क्यों सुनाया फैसला
लक्ष्मणगढ़ में दस साल पुराने विवादित जमीन के दावे को खारिज करते हुए एडीजी लक्ष्मणगढ़ ने अहम फैसला सुनाया है। विवादित जमीन को सार्वजनिक भूमि के रूप में फैसला सुनाते हुए एसडीओ लक्ष्मणगढ़ को देखरेख के लिए नियुक्त किया है।

सीकर. लक्ष्मणगढ़ में दस साल पुराने विवादित जमीन के दावे को खारिज करते हुए एडीजी लक्ष्मणगढ़ ने अहम फैसला सुनाया है। विवादित जमीन को सार्वजनिक भूमि के रूप में फैसला सुनाते हुए एसडीओ लक्ष्मणगढ़ को देखरेख के लिए नियुक्त किया है। अपर जिला न्यायाधीश लक्ष्मणगढ़ यशवंत भारद्वाज ने जमीन पर किसी प्रकार के स्थाई निर्माण पर रोक लगाने के आदेश दिए। लक्ष्मणगढ़ में मोची समाज की ओर से अनिल कुमार, कमल कुमार व भारत भूषण ने सीकर न्यायालय में दावा पेश किया था। उन्होंने कहा कि वार्ड नंबर 12 मोचियों के कुएं के सामने भूमि है। भूमि को सार्वभोम ठिकाने की ओर से मोची समाज को 65 साल पहले दी गई। 60 साल पहले भूमि पर बाउंड्रीवाल कर प्याऊ का निर्माण कराया। इसका सिटी सर्वे रिकॉर्ड में पंजीयन कराया। दावे में कहा कि आनंद, औंकारमल, मोहनलाल बनवारीलाल का जमीन का निजी तौर पर स्वामित्व नहीं है। इसके बावजूद इन्होंने आमीन, जुबैदा, मो अयूब, मेराज व अकरम को बिना विक्रय अधिकार के विक्रय कर दिया। इनकी मोचीयान में जमीन थी जिसे नूर मोहम्मद लुहार के पुत्रों को बेच कर पंजाब चले गए थे। बगीची पर लगे शिलालेख को क्षतिग्रस्त कर प्याऊ व निर्माणाधीन कोठे को तोडऩे का प्रयास किया। वहीं दूसरे पक्ष की ओर से भी जवाब प्रस्तुत किया गया कि यहां पर कभी बगीची नहीं रही। उनके पिता केसरदेव का कब्जा व आवास रहा था।
बिना दस्तावेज रजिस्ट्री कराई, कनेक्शन लगवाया
जांच में पता लगा कि विक्रय पत्र आनंद, औंकारमल, मोहनलाल व बनवारीलाल ने आमीन के पक्ष में स्टांप पर लिखा है। विक्रय पत्र के आधार पर रजिस्ट्री करने वाले कार्यालय की ओर से निर्देशित किया गया है कि जमीन के टाइटल को लेकर कोई दस्तावेज नहीं है। जमीन को विक्रय करते समय विक्रेता के पास टाइटल के कोई कागजात नहीं थे। जिससे विक्रेता का हक संदेहपूर्ण माना। बयानों में स्पष्ट हुआ कि भूमि पर बिजली व पानी के कनेक्शन भी करवा लिए। समाज की संस्था रजिस्टर्ड नहीं है। भूमि को समाज की बैठक व अन्य कार्यों के लिए उपयोग किया जाता रहा। बाद में व्यक्तिगत तौर पर कनेक्शन लगवाए गए।
कोर्ट ने इन बातों को अहम माना
1. विवादित बगीची मोची समाज से जुड़ी धर्मार्थ सम्पदा है।
2. सम्पदा को पैतृक बताया, कोई वंशावली व अन्य रिकॉर्ड नहीं।
3. भूमि पर कब्जे का रिकॉर्ड नहीं मिला।
4. भूमि को खरीदने के लिए कितना भुगतान हुआ। आय का स्त्रोत नहीं पाया।
5. जमीन का पंजीयन लक्ष्मणगढ़ में करा सकते थे, जबकि सीकर में कराया।
अतिक्रमियों से बचाना न्यायालय की जिम्मेदारी
पत्रावली में एक मात्र सर्वे सीट के अलावा कोई अहम रिकॉर्ड मोची समाज व प्रतिवादीगण के पास नहीं है। सम्पदा को अतिक्रमियों से बचाना न्यायालय की जिम्मेदारी है। एसडीओ सम्पदा की देखरेख करेंगे।
(एडीजी यशवंत भारद्वाज ने जैसा कि फैसले में लिखा )
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