2020-21 — 18742.118
देश में इस तरह बढ़ा ई-वेस्ट
2018-19 — 164662.993
2019-20 — 224041.00
2020-21 — 354540.7
(एकत्रित और संसाधित ई अपशिष्ट टन प्रति वर्ष में)
चिंता इसलिए…पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा
हम जिन ई गैजेट्स को इस्तेमाल के बाद फेंक देते हैं, वही कचरा इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (ई-वेस्ट) कहलाता है। इनसे समस्या तब उत्पन्न होती है जब इस कचरे का उचित तरीके से कलेक्शन नहीं किया जाता। इनके गैर-वैज्ञानिक तरीके से निपटान किए जाने से पानी, मिट्टी और हवा जहरीले होते जा रहे हैं। इसके हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने पर ये जहर स्वास्थ्य पर भी कहर बरपा रहा है। इनमें सीसा, कैडमियम, मर्करी, पॉलीक्लोरिनेटेड बाई फिनाइल, ब्रॉमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंटेस, आर्सेनिक, एस्बेस्टॉस व निकल जैसे खतरनाक रसायन होते हैं।
ई-वेस्ट मैनेजमेंट पार्क की जरूरत
दिल्ली में हर साल करीब 2 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट जनरेट होता है। इसके वैज्ञानिक निपटारे के लिए वहां ई-वेस्ट मैनेजमेंट पार्क की कवायद शुरू हुई है। जानकारों का कहना है कि इस तरह की पहल राजस्थान में भी होनी चाहिए। ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट बनाने वाले निर्माताओं को ही अंतत: ई-वेस्ट का कलेक्शन करना होता है। जिन्हें एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पॉन्सिबिलिटी ऑथराइजेशन (ईपीआरए) दे रखा है।
व्यवस्था सब, फिर भी निस्तारण में कोताही
– 2808 ई-वेस्ट संग्रहण केंद्र हैं देश में
– 118 ई वेस्ट कलेक्शन सेंटर हैं राजस्थान में
– 1917 निर्माताओं को ईपीआर ऑथराइजेशन है देश में
– 13 लाख टन से अधिक ई-वेस्ट प्रोसेसिंग कर सकती हैं ये कंपनियां
– 23 ईपीआर अधिकृत उत्पादक हैं राजस्थान में
– 83254 टन ई-वेस्ट प्रोसेसिंग क्षमता है प्रदेश की
एक्सपर्ट व्यू
नए जमाने की बड़ी समस्या
आने वाले समय में प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत ई-वेस्ट होगा। कोरोनाकाल में जब सब कुछ ऑनलाइन हुआ तो ई गैजेट का उपयोग छोटे बच्चे से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक में बढ़ गया। मोबाइल जैसे कई गैजेट्स ऐसे हैं जिनकी औसत लाइफ दो-तीन साल है। हम पुराने गैजेट इधर-उधर फेंक देते हैं। इनमें बेहद हानिकारक केमिकल होते हैं। कुछ में तो ऐसे पदार्थ होते हैं जिनसे खतरनाक रेडिएशन होता है। ई-वेस्ट मैनेजमेंट पर गंभीरता से काम होना चाहिए।
प्रो. अखिलरंजन गर्ग, एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज, जोधपुर
नगर निकाय बनाएं ई-वेस्ट बैंक
कोरोनाकाल में ई-कचरे की समस्या गांवों-कस्बों से लेकर महानगरों तक बढ़ी है। इसके लिए प्रारंंभिक तौर पर नगर निकायों को ई-वेस्ट बैंक बनाने चाहिए। ताकि यहां से निस्तारण यूनिट तक भेजा जा सके। पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में दस फीसदी ई-कचरे का ही सही निस्तारण हो रहा है। दुनिया के कई देशों में ई-कचरे का बेहतर उपयोग भी किया जा रहा है। उनसे सीखा जा सकता है।
अभिषेक रावत, आइआइटी दिल्ली के पूर्व छात्र व सामाजिक कार्यकर्ता