scriptIndependence Day Special 2018 : जब सीकर रेलवे स्टेशन पर चली अंधाधुंध गोलियां, 60 लोगों की हुई मौत | 15 August 2018 : When firing on sikar Railway Station and sixty Killed | Patrika News

Independence Day Special 2018 : जब सीकर रेलवे स्टेशन पर चली अंधाधुंध गोलियां, 60 लोगों की हुई मौत

locationसीकरPublished: Aug 14, 2018 04:38:14 pm

Submitted by:

vishwanath saini

www.patrika.com/sikar-news/

15 August 2018 : When firing on sikar Railway Station and sixty Killed

15 August 2018 : When firing on sikar Railway Station and sixty Killed

सीकर. बुधवार को भारत स्वतंत्रता दिवस 2018 का जश्न मनाएगा। पूरे देश में जहां विशेष कार्यक्रम होंगे, वहीं आजादी के लिए जान गंवा देने वालों को भी याद किया जाएगा।इ 15 अगस्त के मौके पर हम आपको बता रहे हैं आजादी से पहले सीकर में हुए इस आंदोलन के बारे में जिसमें पांच दर्जन लोगों की जान गई थी।

हुआ यूं कि आजादी से पहले सीकर में स्टेट के लिए संघर्ष छिड़ा, जिसमें 60 लोग अंग्रेजों की गोली से मौत का शिकार भी हुए। सीकर निवासी इतिहासकार महावीर पुरोहित मसला बताते हैं कि राव राजा दौलतसिंह द्वारा सीकर की स्थापना के बाद 1938 में जयपुर स्टेट ने सीकर के राव राजा के अधिकार वापस छीन लिए थे।

जो सीकरवासियों को बर्दाश्त नहीं हुआ। वे आंदोलन पर उतर आए। जिस पर काबू पाने के लिए जयपुर स्टेट ने अंग्रेज अधिकारी आई यंग को यहां भेजा। जिसने रेलवे स्टेशन पर रेल में बैठे आंदोलनकारियों पर ही अंधाधुंध गोलियां दाग दी। इस गोलीकांड में 50 से 60 लोगों की मौत हो गई। जिसके बाद आंदोलन और उग्र हो गया। सीकर तीन महीने बंद रहा और आखिरकार 1943 में सीकर के राव राजा को सारे अधिकार वापस देने पड़े।

फिर सीकर को जिला बनाने के लिए किया संघर्ष
सीकर का जिला बनना भी संघर्ष का परिणाम है। बतादें कि आजादी के बाद राजस्थान राज प्रमुख सवाई मानसिंह सीकर को जिला बनाने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन, इसके लिए समाजसेवी बद्रीनारायण सोढ़ाणी ने एक लंबा आंदोलन छेड़ा। जिस आंदोलन की बदौलत सवाई मानसिंह को मामले में बांचू समिति का गठन करना पड़ा। जिसने यहां के संघर्ष और मोबीन कारीगर के करामाती तराजु से प्रभावित होकर 1949 में सीकर को जिला घोषित किया।

तांत्या टोपे का अंग्रेजों से युद्ध
स्वतंत्रता काल में अंग्रेजों से संघर्ष करने के लिए तांत्या टोंपे 21 जनवरी 1959 को सीकर आए थे। यहां अपनी 16 हजार लोगों की सेना के साथ उन्होंने बड़ीपुरा में अंग्रेजों से लोहा लिया। हालांकि संघर्ष लंबा नहीं चला। अपने तोपखानों को नजदीक ही तालाब में फेंककर वे वापस अपने साथियों के साथ मारवाड़ की ओर लौट गए।

कूदन गोलीकांड
1935 के करीब कूदन में कर से परेशान किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिए थे। कर देना भी बंद कर दिया था। इस पर अंग्रेज अधिकारी डब्ल्यू. टी. वेब ने पुलिस ले जाकर वहां किसानों पर अंधाधुंध फायरिंग करवा दी। घटना में 3 लोग शहीद हो गए। जिसके बाद मामला और तूल पकड़ गया। लेकिन, बाद में चौधरी बक्सा महरिया ने मध्यस्थता की। एकबारगी अपनी जेब से किसानों का कर अदा करने की बात कहते हुए दोनों पक्षों में समझौता कराया।

ट्रेंडिंग वीडियो