प्रदेश में 15 हजार सहकारी संस्थाएं कागजों में गुम
36 हजार से अधिक सहकारी संस्थाओं में से 21 हजार ही सक्रिय, कई सहकारी संस्थाओं के चुनाव भी सालों से नहीं हुए

सीकर. समाज के विभिन्न तबकों के विकास और प्रदेश में सहकार की कड़ी को मजबूत करने के लिए बनी सहकारी समितियां लगातार कागजों में गुम हो रही है। पिछले पांच सालों में 15 हजार से अधिक सहकारी संस्थाएं कागजों में ही खो गई है।
इसके बाद भी सरकार इन निष्क्रिय संस्थाओं को संजीवनी नहीं दे पा रही है। दूसरी तरफ नई सामाजिक संस्थाओं का लगातार पंजीयन हो रहा है। सहकारिता विभाग के अनुसार प्रदेश में फिलहाल 36 हजार 122 से अधिक सहकारी संस्थाएंपंजीकृत हैं। इनमें से 21 हजार सहकारी संस्थाएं ही धरातल पर काम कर रही है। कई बार निष्क्रिय संस्थाओं को भंग करने की मांग भी उठ चुकी है। खास बात यह है कि पंजीकृत 36 हजार संस्थाओं में से भी करीब आधी संस्थाओं के चुनाव भी समय पर नहीं हो रहे हैं।
6850 संस्थाओं के इस महीने में चुनाव
लगातार चुनाव नहीं कराने का मामला विभाग के ध्यान में आने पर कई संस्थाओं को नोटिस जारी किए गए। विभाग का दावा है कि इस महीेने में प्रदेश में 6850 संस्थाओं में चुनाव होंगे। इस महीने में सबसे ज्यादा चुनाव दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों के प्रस्तावित है।
डेयरी और महिला समितियों में ज्यादा ढील
डेयरी और महिला समितियों की सहकारी संस्थाओं में सबसे ज्यादा ढील सामने आ रही है। प्राथमिक डेयरी में जहां 15 हजार 381 संस्थाएं पंजीकृत हैं, लेकिन सक्रिय संस्था 8975 ही है। महिला समितियों की बात करें तो 4793 में से 2358 ही संस्था सक्रिय है।
मनमर्जी का राज
इन संस्थाओं में मनमर्जी का राज भी जारी है। प्रदेश की 13 सहकारी समितियों की ओर से तो पिछले आठ से दस साल में कभी चुनाव नहीं कराए गए। जबकि इनके विधान के अनुसार तीन से पांच साल में चुनाव होने होते हैं।
इधर, गली-गली में खुल गए एनजीओ, हर साल पांच हजार पंजीयन
इधर, प्रदेश में स्वयंसेवी संस्थाओं की संख्या भी हर साल बढ़ रही है। चार साल में तीन लाख से ज्यादा पंजीयन हुए हैं। विभाग की ओर से इनका पंजीयन तो किया जा रहा है लेकिन लक्ष्यों के हिसाब से निगरानी की प्रदेश में कोई व्यवस्था नहीं है।
ऐसे समझें प्रदेश में सहकारी समितियों का पूरा गणित
सहकारी समिति पंजीकृत संस्था सक्रिय
पैक्स 6089 6018
लैम्पस 598 597
प्राथमिक डेयरी 15381 8975
प्राथमिक बुनकर 713 136
गृह निर्माण सहकारी 972 205
प्राथमिक भंडार 602 277
महिला समिति 4793 2358
क्रेडिट व थ्रिफ्ट 1162 604
नागरिक सहकारी बैंक 37 31
प्रा. स. भूमि विकास बैंक 36 36
अन्य प्रा. सहकारी समिति 5304 1428
फल सब्जी संघ 44 23
क्रय विक्रय सहकारी समिति 229 224
होलसेल भंडार 37 33
जिला दुग्ध संघ 21 21
बुनकर संघ 4 3
केन्द्रीय सहकारी बैंक 31 29
इनका कहना है...
स्वयंसेवी व सहकारी समितियों की संख्या में इजाफा होना गलत नहीं है। लेकिन सामाजिक संस्थाओं को भी अपनी जिम्मेदारी समाज के प्रति समझनी होगी। जिन लक्ष्यों को लेकर संस्थाओं का गठन होता है वह उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए धरातल पर क्या प्रयास कर रही है इसकी संबंधित विभागों की ओर से मॉनिटरिंग की व्यवस्था विकसित होनी चाहिए। इससे संस्था बनाकर भूलने वालों पर लगाम कसेगी। सरकार को विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा कार्य करने वाली संस्थाओं को प्रोत्सोहित भी करना होगा।
सुनीता चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता, सीकर
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