आंचल के दूध से दूर हुए 35 मासूम
सीकर जिले में पिछले दस वर्ष में 35 मासूम अपनी मां के आंचल के दूध से दूर हुए हैं। इनमें से महज को ही अपनों ने सरकारी पालने में छोड़ा गया है। 23 मासूमों को अपनों ने कभी कांटों में तो कभी पेड़ के पत्तों के बीच छोड़ा है। अपनों से बिसराए जाने के बाद भी अधिकतर जीवन की जंग जीत गए, लेकिन आठ मासूमों की मौत हो गई। विभाग के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो अब तक 23 को गोद दे दिया गया। तीन को वापस माता-पिता के सुपर्द कर दिया गया है।
मै...नहीं पाल सकती बच्चा...सरकार को किए तीन बच्चे सुपुर्द
जन्म के बाद बच्चों को बिसराने के बढ़ते मामलों के बीच सीकर जिले के तीन उदाहरण जागरूकता की बड़ी मिशाल भी है। समझाइश पर इन मांओं ने अपने लाल को विभाग को सुपर्द कर दिया। राजकीय संप्रेक्षण एवं किशोर ग्रह की अधीक्षक डॉ. गार्गी शर्मा का कहना है कि विभाग को बच्चा सुपुर्द करने वाले व्यक्ति की पहचान किसी भी स्तर पर सार्वजनिक नहीं की जा सकती। यहां तक की न्यायालय में भी नहीं। बच्चा सुपुर्द करने के लिए कोई विशेष प्रकिया भी नहीं अपनानी पड़ती। इसकी सूचना देने पर ही सीडब्ल्यूसी और विभाग के सदस्य पहुंच कर आवेदन की प्रक्रिया पूरी करते हैं। इसके लिए महज दो गवाहों के हस्ताक्षर करवाने होते हैं।
समाज के दंश ने किया मजबूर...
बच्चा सुपुर्द करने के तीनों मामलों पर नजर डाली तो सामने आया कि समाज की कमजोर होती मानसिकता ने उन्हें यह दंश दिया था। बलात्कार की शिकार होने के बाद आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आ गया, लेकिन उसे ऐसा दर्द दे गया, जिसे वह कभी नहीं भूल सकती। परिवार के लोगों ने छिपा कर उसका प्रसव करवाया। आखिर विभाग और पुलिस की समझाइश पर उसने बच्चे को सरेंडर किया जिले के दूसरे दो अन्य मामलों में भी ऐसा ही तथ्य सामने आया है।
आंचल से दूर होती कन्या...
मां के आंचल से दूर होने वाले मामलों की संख्या देखी जाए तो 2012 से अब तक 20 बालिकाओं को जन्म लेने के कुछ समय बाद ही अपनों ने बिसराया है। जबकि बालकों की संख्या 15 रही है। इनमें से किसी भी मामले में पुलिस इनके परिजनों की तलाश नहीं कर पाई।
लावारिश बच्चे मिलने की स्थिति
वर्ष कन्या बालक
2012-01-00
2013-02-00
2014-02-01
2015-03-01
2016-03-02
2017-03-01
2018-00-01
2019-04-02
2020-02-01
2021-03-03
2022-00-02