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बड़ी कंपनी की जॉब छोड़कर लिया सन्यास, 14 साल से भ्रमण कर रही है ये साध्वी

locationसीकरPublished: Dec 02, 2022 02:59:12 pm

Submitted by:

Sachin

सीकर. आत्म या तत्वज्ञान की राह व्यक्ति को बैरागी बना देती है। हर सुख उसके सामने तुच्छ हो जाते हैं। फिर वह सुख चाहे परिवार का हो, पैसों का हो, पद या प्रतिष्ठा का हो।

इंजीनियरिंग की जॉब मिलने पर गुरु ने कहा 'आत्मा के इंजीनियर बनो', इसी वाक्य ने जिंदगी बदल दी: आर्यिका सुदृढमति माताजी

इंजीनियरिंग की जॉब मिलने पर गुरु ने कहा ‘आत्मा के इंजीनियर बनो’, इसी वाक्य ने जिंदगी बदल दी: आर्यिका सुदृढमति माताजी

सीकर. आत्म या तत्वज्ञान की राह व्यक्ति को बैरागी बना देती है। हर सुख उसके सामने तुच्छ हो जाते हैं। फिर वह सुख चाहे परिवार का हो, पैसों का हो, पद या प्रतिष्ठा का हो। इसी की बानगी जैन साध्वी आर्यिका सुदृढमति माताजी है। जो कभी इंजीनियरिंग के बाद एक निजी कंपनी में अच्छे जॉब पर थी। पर गुरु के ‘आत्मा की इंजीनियरिंग’ करने के एक उपदेश ने उनकी जिंदगी ही बदल दी। नागौर में चातुर्मास के बाद शहर के नया दिगंबर जैन मंदिर पधारी माताजी से जब पत्रिका ने बात की तो उन्होंने अपने अतीत से लेकर भविष्य की योजनाओं व समाज तथा अध्यात्मक के विभिन्न पहलुओं पर यूं चर्चा की।

स. माताजी, आपका अतीत कैसा रहा और ऐसी क्या परिस्थिति हुई कि एक इंजीनियर को संसार से वैराग्य हो गया?
ज. गुजरात के वडौदरा में जन्म के बाद से जीवन सामान्य रहा। पढ़ाई के साथ मौज- मस्ती व फिल्म देखने का शोैक रहा। यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग करते समय अंतिम वर्ष में पास स्थित जिनालय में किसी के साथ जाना हुआ तो वहां दिगंबर गुरू को देखकर मन में संतोष का भाव जगा। यूं लगा कि जीवन में जो कुछ छूट रहा था, वह मिल गया। फिर तो वहां जाने का क्रम बन गया। जब एलएनटी कंपनी में जॉब मिला तो उस शाम को भी मैं खुशी- खुशी वहां गई। जब गुरू को जॉब के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि ‘अब आत्मा के इंजीनियर भी बनो।’ उस वाक्य ने ही जिंदगी बदल दी। धीरे- धीरे जैन शास्त्र पढ़े तो सारी जिज्ञासाएं शांत हो गई और अपने आप वैराग्य के मार्ग का चयन हो गया। 11 अप्रेल 2008 में गृह परित्याग कर दिया।

स. ये तो अतीत की बात रही, भविष्य का लक्ष्य क्या है?
ज. साधु जीवन का मुख्य लक्ष्य आत्म साधना से आत्म शुद्धि के साथ जीव मात्र का कल्याण करना होता है। आज समाज के व्यसन मुक्त होने की जरुरत है। उसी पथ पर आगे चलना है।

स. धर्म के मार्ग पर व्यक्ति कभी- कभी भ्रमित हो जाता है कि वह ईश्वर की पूजा या अच्छे कर्म करे या एकांत में तप करे। इस भ्रम को कैसे दूर किया जाए?
ज. अंधकार से लड़ा नहीं जाता है। उसके लिए दीपक की जरुरत होती है। जितने भी भ्रम है, उसे दूर करने के लिए गुरुरूपी दीपक की जरुरत है। जैसे मुझे मेरे गुरु सुनिल सागरजी ने कभी नहीं भटकने दिया।

स. पर आज के युग में तो ढोंगी साधु व गुरुओं के मामले भी बढ़ गए हैं। सच्चे गुरू की पहचान कैसे हो?
ज. सच्चा गुरु वह है जो कशायों व परिग्रह से रहित है। ज्ञान, ध्यान व तप में लीन है और लौकिक होकर भी अलौकिक जीवन जीता है। सांसारिक लोगों जैसी रुचि व चर्या तथा धन, पत्नी, पैसा, मठ आदि में रमना गुरु के लक्षण नहीं है।

स. साधक कई बार द्वैत या अद्वैत में भी उलझ जाता है। वह समझ नहीं पाता कि वह ईश्वर से अलग है या एक ही है?
ज. जैन धर्म अनेकांत की बात करता है। इसलिए द्वैत भी है और अद्वैत भी। शुरुआत द्वैत से होती है पर अंत में साधक ईश्वर में एकाकार होकर अद्वैत हो जाता है।

स. धर्म का प्रचार व प्रभाव तो खूब दिखाई दे रहा है, लेकिन पाप व अपराध कम नहीं हो रहे?
ज. वास्वत में धर्म की जगह आडंबर और अपने- अपने मत की मान पुष्टि बढ़ रही है। धर्म बढ़ता तो पाप नहीं बढ़ता। क्योंकि अहिंसा ही परम धर्म है। पाप व अपराध बढऩा काल यानी कलयुग का असर भी है।

स. तो क्या कलियुग में धार्मिक आधार पर विवाद सुलझने की संभावना नहीं?
ज. कोई भी काम असंभव नहीं। इंपोसिबल भी कहता है आई एम पोसिबल। पर जब सब धर्म व गुरुओं का लक्ष्य सबका हित हो जाए तो ही ऐसा हो सकता है।

स. समाज में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार व उत्पीडऩ को दोषी किसे माना जाए?
ज. कहते हैं कि महिलाओं पर अत्याचार पुरुष करते हैं। पर खुद महिला भी इनके लिए जिम्मेदार है। स्वतंत्रता जब स्वच्छंदता में बदलती है तो गलत होता है। बेटियों को शिक्षण के साथ शील व्रतों की महिमा बतानी चाहिए। कन्या को कलंक नहीं कनक बनना चाहिए। इसके लिए माता- पिता व घर के वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। धर्म व सत्संगति से जुडऩे पर अत्याचार अपने आप कम हो जाएंगे।

स. समाज के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?
ज. सीकर शिक्षा नगरी बन गया है। यहां के होनहार शिखर पर पहुंच रहे हैं, लेकिन गति के साथ हमें सीकर की प्रगति भी देखनी होगी। बच्चों को सही दिशा व उर्जा मिलना जरूरी है। जैसे पेट्रोल वाली गाड़ी में डीजल डालने पर वह आगे नहीं बढ़ती, वैसे ही रचना से शाकाहारी शरीर में मांस- अंडा, मछली व शराब डालने से उन्नति की गाड़ी नहीं चलेगी। शराब की चीयर्स भविष्य के टीयर्स (आंसू) और फास्ट फूड फास्ट डेथ है। जिनके उपयोग से मंजिल तक पहुंचना ही मुश्किल हो जाएगा। मील (भोजन)के साथ मोबाइल का भी ध्यान रखे। दोनों ही जीवन बनाने के साथ बिगाडऩे वाले भी हैं। भोजन जीवन के लिए हो जीवन लेने के लिए नहीं और मोबाइल का भी सदुपयोग हो। प्रसन्नता, सुख व उन्नति के लिए भगवान महावीर स्वामी के जीयो और जीने दो के सिद्धांत का पालन करें।

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