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राजस्थान में इस ऑटो चालक की दोनों बेटियां लगी सरकारी नौकरी, जानिए कामयाबी की पूरी कहानी

locationसीकरPublished: Oct 12, 2018 02:07:11 pm

Submitted by:

vishwanath saini

यह कहानी है कि राजस्थान के सीकर शहर के राधाकिशननपुरा निवासी ऑटो चालक मुरारका प्रसाद सैनी की बेटियों की.

sikar girl

Auto Drivers Two Daughter Got Govt Job in sikar Rajasthan

सीकर. यदि मन में कुछ करने का जुनून हो तो मुसीबत खुद राह से हट जाती है। बचपन से घर में अभाव देखे लेकिन मन में एक जूनून सरकारी नौकरी हासिल कर माता-पिता के चेहरे पर खुशी लाने का। पिता ऑटो चालक और माता गृहिणी।

इनकी दो बेटियों ने अपनी मेहनत के दम पर सफलता का परचम लहराया है। यह कहानी है कि राजस्थान के सीकर शहर के राधाकिशननपुरा निवासी ऑटो चालक मुरारका प्रसाद सैनी की।

उनकी दो बेटियों का तीन महीने के अंतराल में राजकीय सेवा में चयन हो गया है। सैनी ने रिक्शा चलाकर अपनी बेटियों के सपनों का पूरा करने में जुटा रहा।

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बकौल सैनी, बचपन से ही बेटियों की पढ़ाई के लिए संघर्ष किया। दोनों बेटियों ने सरकारी नौकरी लगकर बड़ा ख्वाब पूरा किया है। बड़ी बेटी किरण सैनी पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय में कनिष्क लेखाकार पद पर लगी है।

वहीं छोटी बेटी लक्ष्मी सैनी को अजमेर विद्युत विभाग के सबलपुरा पावर हाउस सीकर के एक्सईएन विजिलेंस टीम में कनिष्क लेखाकार के पद पर नियुक्ति मिली है।


यह सोच आई काम
ऑटो चालक मुरारका प्रसाद सैनी ने बताया कि उन्होंने कभी भी बेटा-बेटियों में भेद नहीं किया। दोनों बेटियों को पढऩे-लिखने का भरपूर अवसर दिया। नतीजा यह रहा कि बेटियों ने भी मेहनत करने में कोई कमी नहीं छोड़ी और आसमां छू लिया।

 


शेखावाटी की इन बेटियों ने भी बढ़ाया मान

-आईएएस स्वाति मीणा
वर्ष 1984 में जन्मी स्वाति मीणा सीकर जिले के श्रीमाधोपुर तहसील के गांव बुरजा की ढाणी की रहने वाली हैं। वर्ष 2007 में पहले ही प्रयास में आईएएस परीक्षा 260वीं रैंक से उत्तीर्ण की। इन्हें मध्यप्रदेश कैडर मिला। वर्ष 2012 में जिला कलक्टर के रूप में मंडला जिले में पहली पोस्टिंग मिली। तब इनकी उम्र 28 साल थी। स्वाति मीणा को देश की सबसे कम उम्र में जिला कलक्टर बनने का गौरव भी हासिल है। मध्यप्रदेश में जिला कलक्टर के पद पर रहते हुए स्वाति ने नर्मदा के रेत और खनन माफिया पर नकेल कसी। इसके अलावा स्वाति को अपने काम में राजनेताओं का हस्तक्षेप और निकम्मे अधिकारी पसंद नहीं। इसी वजह से इन्हें दबंग आईएएस के तौर पर भी पहचाना जाता है। स्वाति ने मध्यप्रदेश कैडर के ही आईएएस तेजस्वी नायक से शादी की है।

-आईपीएस सरोज कुमारी

राजस्थान के झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील में छोटा सा गांव है बुडानिया। इसी छोटे से गांव बुडानिया की बेटी सरोज कुमारी ने ऊंची उड़ान भरी है। वर्ष 2011 में सिविल सर्विसेस एग्जाम उत्तीर्ण करने वाली सरोज कुमारी को गुजरात कैडर मिला। बोटाद जिले में एसपी रहते हुए सरोज कुमारी ने फिरौती व वसूली करने वाले कई अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया। नतीजा वहां सरोज कुमारी की छवि लेडी सिंघम की बनी। इसके अलावा सरोज कुमारी ने बोटाद के गांवों में जिस्मफरोशी के दलदल में फंसी कई महिलाओं की जिंदगी संवारी। उनके लिए उज्ज्वला योजना चलाकर सरोज कुमारी सेक्स वर्कर्स को समाज की मुख्यधारा में लेकर आई और उन्हें रोजगार मुहैया करवाकर स्वावलम्बन बनाया। इसके अलावा जनवरी 2018 में बड़ोदरा में आयोजित इंटरनेशनल मैराथन में मुश्किल दिनों (माहवारी) के बावजूद सरोज कुमारी ने 21 किलोमीटर की दौड़ पूर्ण महिलाओं को संदेश दिया।


-आईएएस फराह हुसैन

राजस्थान से आईएएस बनने वाली दूसरी मुस्लिम बेटी है फराह हुसैन। झुंझुनूं के गांव नुआं की रहने वाली हैं। फराह हुसैन बेहद होनहार हैं। तभी तो पहले ही प्रयास में सिविल सेवा उत्तीर्ण कर दिखाई। वो भी बिना किसी कोचिंग के। वर्ष 2016 में 26 वर्षीय फराह आईएएस बनी तब इनके पिता अशफाक हुसैन दौसा के जिला कलक्टर थे। किसी आईएएस पिता के लिए वो पल बहुत ही गर्व का रहा होगा जब बेटी उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर बुलदियों को छू लिया हो। 267वीं रैंक हासिल करने वाली फराह हुसैन मुस्लिम समाज की बेटियों के लिए प्रेरणा है।


-आईपीएस प्रीति चन्द्रा


राजस्थान के जिस भी जिले में आईपीएस प्रीति चन्द्रा की पोस्टिंग होती तो वहां के अपराधियों में खलबली मच
जाती है। वजह प्रीति चन्द्रा का तेज तर्रार और ईमानदार आईपीएस होना था। तभी तो इन्हें राजस्थान की लेडी सिंघम कहा गया। वर्ष 2008 बैच की आईपीएस अधिकारी प्रीति चन्द्रा सीकर जिले के गांव कुदन के साधारण परिवार में जन्मीं। प्रीति ने पत्रकार से आईपीएस तक का सफर बिना कोचिंग के तय किया। अलवर में एएसपी, बूंदी एसपी और कोटा एसीबी में एसपी व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर तैनात रहीं। बूंदी में देह व्यापार में बच्चियों को धकेलने वाले एक गिरोह का खुलासा कर अपराधियों को सलाखों तक पहुंचाने वाली दबंग अफसर प्रीति चन्द्रा ही थीं।


-आईएएस मंजू राजपाल


चूरू की बेटी मंजू राजपाल जब आईएएस बनी तो शुरुआत दिनों में उन्हें प्रशासनिक स्तर पर काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। एपीओ तक कर दी गई। आईएएस होते हुए एसडीएम पद पर काम करना पड़ा, मगर तमाम दिक्कतें मंजू राजपाल का हौसला नहीं तोड़ पाई। वर्ष 2000 बैच में महिला टॉपर आईएएस मंजू राजपाल ने डूंगरपुर में जिला कलक्टर रहते हुए कमाल कर दिखाया। वर्ष 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मंजू राजपाल को बेस्ट कलक्टर को अवार्ड दिया गया। डूंगरपुर के आदिवासी क्षेत्र में कलक्टर मंजू राजपाल ने अपनी गहरी छाप छोड़ी थी। बेटियों को गोद भी लिया।

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