मिलावट और संक्रमण का खतरा
शिक्षकों का कहना है कि दूध स्कूलों में बिना गुणवत्ता जांच के पहुंचता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जांच की भी व्यवस्था नहीं है। दूसरी तरफ कोरोनाकाल की वजह से दूध को लेकर आने से लेकर बांटने तक संक्रमण का भी खतरा है। —-
पिछली सरकार के समय शुरू हुई थी योजना
प्रदेश में दूध योजना भाजपा सरकार के समय शुरू हुई थी। इसके तहत विद्यार्थियों को 150 से 200 एमएल दूध दिया जाता है। बच्चों में कुपोषण दूर करने के मकसद से यह योजना शुरू की थी।
आंकड़ों में समझें दूध का गणित
दूध के लिए बजट: 728 करोड़ से अधिकऔसत खर्चा: 700 करोड़दूध योजना के दायरे में: 62 लाख विद्यार्थीयोजना कब शुरू: 2018 मेंकक्षा एक से पांच के बच्चों को दूध: 150 एमएलकक्षा छठी से आठवीं के बच्चों को दूध: 200 एमएल
इसलिए शिक्षक संगठन विरोध में…
1. दूध की गुणवत्ता:
दूध की गुणवत्ता लगातार सवालों के घेरे में रही है। कई जगह दूध की गुणवत्ता को लेकर शिकायत भी हुई और मामला विधानसभा में भी गूंजा। विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य भी इसको लेकर आरोप लगा चुके हैं।
2. शिक्षकों पर अतिरिक्त भार:
दूध योजना की वजह से शिक्षकों पर अतिरिक्त भार आ गया। दो से तीन शिक्षकों को दूध लाने से लेकर वितरण का काम संभालन पड़ता है। इसका सीधा असर विद्यार्थियों की पढ़ाई पर पड़ता है।
3. समय पर नहीं होता भुगतान:
प्रदेशभर में दूध योजना के लिए बजट का टोटा भी बड़ी समस्या है। कई जिलों में समय पर भुगतान नहीं होने के कारण शिक्षकों को अपनी जेब से दूध के पैसे चुकाने पड़ते हैं।
यह हो सकते हैं नए विकल्प
बिस्किट ड्राईफ्रूट, सलाद, फल,उपमा
विद्यार्थियों की परेशानी:
बिना चीनी के कैसे पीए दूधविद्यार्थियों की दिक्कत यह है कि अधिकांश स्कूलों में बिना चीनी के दूध पिलाया जाता है। इस वजह से विद्यार्थी दूध पीने में काफी आनाकानी करते हैं। विद्यार्थियों की ओर से लगातार चीनी की मांग की जाती है। लेकिन बजट के अभाव में बच्चों को मीठा दूध नहीं दिया जा रहा।
दूध योजना को लेकर लगातार शिकायत: शिक्षामंत्री
दूध योजना का मामला विधानसभा में भी गूंज चुका है। शिक्षक संगठन के विरोध की गूंज भी कई बार सुनाई देती है। सरकार दूध योजना की जल्द समीक्षा करेगी। इसके बाद गरीब विद्यार्थियों के जो हित में होगा वही निर्णय लेंगे।
गोविन्द सिंह डोटासरा, शिक्षा मंत्री
बंद हो दूध योजना
प्रदेशभर में दूध योजना को बंद कर देना चाहिए। सभी विद्यालयों में एक घंटा शिक्षकों का खराब होता है। इसके लिए सरकार को अन्य विकल्प तलाशने होंगे।महेन्द्र पाण्डे, महामंत्री, राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ
बच्चों की पढ़ाई बर्बाद
अन्नपूर्णा दूध योजना बच्चों के शारीरिक विकास के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन इससे पढ़ाई का एक पीरियड बर्बाद होता है। सरकार इस प्रकार की योजना बनाए जिससे अध्ययन का वक्त खराब नहीं हो। उपेंद्र शर्मा, प्रदेश महामंत्री, राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत
35 फीसदी विद्यार्थी ही लेते हैं फायदा
इसका लाभ वास्तव में 35 फीसदी छात्र ही लेते हैं। ज्यादातर छात्र दूध नहीं पीते। इस राशि का उपयोग बच्चों को अन्य पौष्टिक चीजें उपलब्ध कराने में किया जाए तो समय की बचत भी होगी और नामांकन में भी वृद्धि होगी।
भंवरलाल काला, संभाग संयोजक, राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत—
समय पर भुगतान नहीं होने से परेशानी
अन्नपूर्णा दूध योजना से स्कूलों में काफी समय बर्बाद होता है। समय पर भुगतान नहीं होने पर शिक्षकों को परेशानी होती है, इसलिये सरकार हर बिंदु पर समीक्षा कर बेहतर विकल्प तय करें।
शिवदत्त आर्य, प्रदेश उपाध्यक्ष, राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत
कोरोनाकाल में कैसे होगा वितरण
कोरोनाकाल में दूध बच्चों को पिलाना कतई संभव नहीं होगा। ऐसे में सरकार को तत्काल कोई निर्णय लेकर इसके विकल्प तलाशने होंगे।
महेश सेवदा, प्रदेश संगठन मंत्री रेस्टा
बिना जांच के दूध पिलाना ठीक नहीं
ग्रामीण क्षेत्रों में दूध के जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार अब दूध जांच के इंतजाम नहीं कर सकी। इसलिए सरकार को अब योजना में कोरोना व मिलावट को देखते हुए बदलाव कर देना चाहिए।
जगदीश प्रसाद मील, राजकीय मा. विद्यालय आकवा