वेतन नहीं मिलने से तंगहाली में एम्बुलेंस कर्मचारियों का घर चलाना मुश्किल हो रहा है, तो वे भला एम्बुलेंस कैसे चलाएंगे? किसी भी सरकार के लिए उसके सूबे की चिकित्सा व्यवस्था सबसे अहम होती है, लेकिन एम्बुलेंसकर्मियों को दो माह से वेतन नहीं मिलना तो संवेदनशील सरकार पर बड़ा सवाल है। हैरानी की बात है कि करीब एक साल से वेतन संबंधी समस्या पेश आ रही थी। कर्मचारियों ने कंपनी व एनएचएम के जिम्मेदारों को भी कई बार समस्या से अवगत करवाया, लेकिन न सरकार और ना ही संबंधित कंपनी ने इस मामले में गंभीरता दिखाई। अब तो दो माह से वेतन के ही लाले पड़ गए हैं।
इधर, पहले भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना और अब आयुष्मान भारत महात्मा गांधी राजस्थान स्वास्थ्य बीमा योजना में क्लेम की बकाया राशि बढ़ती जा रही है। सम्बद्ध निजी अस्पताल संचालकों ने सात दिन में बकाया भुगतान जारी नहीं होने की स्थिति में निशुल्क इलाज के बहिष्कार की घोषणा की है।
एम्बुलेंस के हांफने और उसमें समुचित व्यवस्थाएं नहीं होने संबंधी शिकायतें तो आए दिन आती रहती है, लेकिन जब कर्मचारी दो माह से बगैर वेतन काम कर रहे हो तो आपात स्थिति में इनकी तत्परता कैसे कायम रह पाएगी? जीवनरक्षक चिकित्सा उपकरणों से लेस होने का दावा करने वाली इन एम्बुलेंस की कई बार पोल खुलती रही है। दो महीने से इसके चालकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला तो इनकी निगरानी का जिम्मा रखने वाले अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या मोटी तनख्वाह लेने वाले इन जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? यदि वेतन के अभाव में इन एम्बुलेंस का संचालन ठप हो गया तो आपात स्थिति में घायलों और मरीजों को अस्पताल कौन पहुंचाएगा? ऐसी स्थिति में किसी की जान पर बन आई तो कौन जिम्मेदार होगा…? फिलवक्त तो एम्बुलेंस कर्मियों को वेतन रूपी संजीवनी चाहिए। जिसके लिए सरकार को ही संवेदनशील होना पड़ेगा। तभी यह जीवनदायिनी ‘आयुष्मान’ रहेगी।