शहादत के सम्मान में उमड़ा गांव, नहीं जल चूल्हे हैडकांस्टेबल रतनलाल की शहादत के सम्मान में तिहावली और आसपास के गांव उमड़ गए। शहीद के सम्मान में बुधवार को गांव की एक भी दुकान नहीं खुली। लोगों ने अंतिम संस्कार से पहले घरों में खाना भी नहीं बनाया। शव आने की सूचना पर तड़के पांच बजे ही गांव के लोग गांव से तीन किलोमीटर दूर हाइवे पर स्थित सदीनसर गांव के बस स्टैंड पर एकत्र हो गए। गांव के युवा शहीद के शव को बाइक से अगवाई कर सदीनसर तक लाए। इसके बाद शहीद घोषित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गया। गांव के लोगों का कहना था कि हैड कांस्टेबल रतनलाल की शहादत पर उन्हें गर्व है। लेकिन देश की राजधानी में उपद्रवियों की गोली लगने से ग्रामीण बेहद गुस्से में नजर आ रहे थे। लोगों का कहना था कि रतनलाल दो दिन पहले शहीद हो गए थे, लेकिन किसी भी नेता और अधिकारी ने उनके परिवार की सुध नहीं ली। रास्ता जाम कर प्रदर्शन करने पर ही नेताओं की आंख खुली है।
रतनलाल की बड़ी बेटी सिद्धी का कहना है पापा देश के लिए काम कर रहे थे। वह अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। इस दौरान उनको गोली गली थी। ऐसे में उनके हत्यारों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। इसके बाद वह मायूस हो गई। उसने कहा कि पापा कहते थे रिटायरमेंट के बाद अपन गांव ही चलेंगे। बेटी ने कहा वह कहते थे कि पहले तुम पढ़ लिख लो इसके बाद जो भी बनना है वह बन जाना।
सात वर्षीय बेटे ने दी मुखाग्नि
दिल्ली हिंसा में वीर गति पाने वाले सीकर के जवान रतनलाल का अंतिम संस्कार पैतृक गांव तिहावली स्थित अंत्येष्टि स्थल पर हुआ। शहीद को सात वर्षीय बेटे राम ने मुखाग्नि दी। शहीद रतनलाल की अंतिम यात्रा में तिहावली के अलावा डाबली, सिदनसर, फतेहपुर सहित आसपास के कई गांवों व झुंझुनूं तक के हजारों लोग शामिल हुए। जो पूरी यात्रा में शहीद रतनलाल अमर रहे, वंदेमातरम व भारत माता के गगनभेदी जयकारे लगातार लगाते रहे।