scriptPHOTO: तीन साल पहले निजी स्कूलों को 60 लाख सालाना फीस देते थे, ग्रामीणों ने 09 करोड़ की जमीन दान दे सरकारी को प्राइवेट से भी बनाया बेहतर | Patrika News
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PHOTO: तीन साल पहले निजी स्कूलों को 60 लाख सालाना फीस देते थे, ग्रामीणों ने 09 करोड़ की जमीन दान दे सरकारी को प्राइवेट से भी बनाया बेहतर

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7 years ago
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एक सोच ने बदली सूरत ग्रामीणों की एक सोच ने विद्यालय की तस्वीर बदल दी है। सरपंच रतन सिंह शेखावत बताते हैं कि तीन वर्ष पहले ग्रामीणों की बैठक हुई। इस दौरान सामने आया कि गांव के बच्चों की पढ़ाई पर हर वर्ष निजी स्कूलों को लगभग 60 लाख रुपए की फीस चुका रहे हैं। ऐसे में ग्रामीणों ने तय कि गांव के विद्यालय को ही क्यों न निजी विद्यालय से अच्छा बना दिया जाए। इसके बाद से गांव का हर बच्चा स्कूलों में भामाशाह का रोल अदा कर रहा है। पिछले दो वर्ष में यहां 37 लाख से अधिक का चंदा एकत्रित हुआ है।
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स्कूल में सुविधा स्कूल के शिक्षक महिपाल सिंह बताते है कि बच्चों की शत-प्रतिशत उपस्थिति के लिए एक शिक्षक की ड्यूटी लगा रखी है। बच्चे के अनुपस्थित रहने पर तत्काल अभिभावकों को फोन कर सूचना दी जाती है। अभिभावकों को समझाया जाता है। इसका नतीजा यह हुआ कि महज दो से तीन बच्चे ही रोजाना अनुपस्थित रहते हैं।
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अब कृषि संकाय के लिए एकजुट विद्यालय की तस्वीर बदलने के लिए ग्रामीणों ने अपने स्तर पर गांव विकास समिति बना रखी है। समिति के अध्यक्ष गोपाल सिंह बुड़ानियां व सचिव ओमप्रकाश बताते है कि गांव के स्कूल में ज्यादातर विद्यार्थी ग्रामीण परिवेश के हैं। गांव के विद्यालय के पास काफी जमीन है। अब हमारी पहली प्राथमिकता यहां कृषि संकाय शुरू कराना है। इसके लिए जल्द ग्रामीणों का प्रतिनिधिमण्डल शिक्षामंत्री से भी मुलाकात करेगा।
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बच्चों को हर सुविधा प्रधानाचार्य, मांगीलाल शर्मा, का कहना है कि विद्यालय को ग्रामीणों ने 150 बीघा जमीन दान दी है। इसकी कीमत लगभग नौ करोड़ रुपए है। विद्यालय में बच्चों को परिवहन की सुविधा भी ग्रामीणों की ओर से दी जा रही है। प्रदेश में संभवतया यह पहला विद्यालय है जिसके पास इतनी जमीन है। गांव के भामाशाह वीरांगना उगम कंवर, मोहन राम, सुल्तान हरि सिंह, रामेश्वर सिंह, श्रवण व केसर का सहयोग में बड़ा रोल है।
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बच्चों को हर सुविधा प्रधानाचार्य, मांगीलाल शर्मा, का कहना है कि विद्यालय को ग्रामीणों ने 150 बीघा जमीन दान दी है। इसकी कीमत लगभग नौ करोड़ रुपए है। विद्यालय में बच्चों को परिवहन की सुविधा भी ग्रामीणों की ओर से दी जा रही है। प्रदेश में संभवतया यह पहला विद्यालय है जिसके पास इतनी जमीन है। गांव के भामाशाह वीरांगना उगम कंवर, मोहन राम, सुल्तान हरि सिंह, रामेश्वर सिंह, श्रवण व केसर का सहयोग में बड़ा रोल है।
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पौधे के आगे नाम स्कूल में लगभग 400 पौधे हैं। पौधो की जिम्मेदारी स्कूल के प्रत्येक विद्यार्थी ने ले रखी है। इसके लिए विद्यार्थियों ने हर पौधे के आगे अपने नाम की पट्टिका भी लगा रखी है। पौधों की देखभाल के लिए ज्यादातर विद्यार्थी स्कूल समय से 15 मिनट पहले आते हैं। रोजाना विद्यालय में प्रार्थना सभा व प्रतियोगिता सहित अन्य आयोजन होते हैं।
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