नाइट टै्रकिंग के अनुभव साझा करते हुए श्रीकांत कलमकर बताते हैं, शनिवार की शाम ६.३० बजे हम १३० साथी बसों और जीप के जरिए नौलखा चौराहे से रवाना हुए। खंडवा रोड पर सिमरोल बाईगांव होते हुए चोरल से पहले रेलवे क्रॉसिंग के पास राइट टर्न लेकर १७ किमी कच्चे रास्ते का सफर तय किया। इस रास्ते में तीन छोटी नदियां क्रॉस करना होती हैं और चोरल नदी तो साथ-साथ होती है।
करीब रात ८.३० बजे कालाकुंड पहुंचे। यहां पहुंचने के लिए दो-तीन जगह स्थानीय ग्रामीणों की मदद लेना पड़ी, क्योंकि यहां जंगल में भटकने का डर होता है। कालाकुंड में स्काउट ग्राउंड पर हमने खाना खाया जो कि हम इंदौर से ही साथ लेकर चले थे। यहां हमने कैंप फायर किया। यहां साथियों ने गिटार बजाया, गाने गाए, मिमिक्री की और कुछ ने डांस भी किया। कुछ साथियों ने अपने पुराने अनुभव साझा किए। रात एक बजे नए साथियों को ट्रेकिंग के नियम समझाए और ट्रेकिंग शुरू की। नाइट ट्रेकिंग के लिए यह परफेक्ट डेस्टिनेशन है।
जंगली जानवर नजर आए
कालाकुंड से कुशलगगढ़ किले तक करीब साढे़ तीन किमी की ट्रेकिंग में बहुत दुर्गम रास्ता और जंगल मिला, जिसमें हमें वाइल्ड लाइफ भी दिखी। हमें जंगली खरगोश, सेही और सियार भागते हुए दिखे। दो नदियां भी क्रॉस की, जिनमें से एक में पानी था। रात ३ बजे हम कुशलगढ़ पहुंचे। यहां ये देख कर अच्छा लगा कि अहिल्याबाई के जमाने के इस किले की सुध अब ली गई है।
कालाकुंड से कुशलगगढ़ किले तक करीब साढे़ तीन किमी की ट्रेकिंग में बहुत दुर्गम रास्ता और जंगल मिला, जिसमें हमें वाइल्ड लाइफ भी दिखी। हमें जंगली खरगोश, सेही और सियार भागते हुए दिखे। दो नदियां भी क्रॉस की, जिनमें से एक में पानी था। रात ३ बजे हम कुशलगढ़ पहुंचे। यहां ये देख कर अच्छा लगा कि अहिल्याबाई के जमाने के इस किले की सुध अब ली गई है।
पुरातत्व विभााग ने यहां की सफाई कराई है और एक चौकीदार भी रख दिया है। अभी तक ये किला उजाड़ पड़ा था। किले पर हमने एक घंटा आराम किया और फिर वापस कालाकुंड की ओर चले। सुबह करीब ५.३० बजे हम वापस कालाकुंड स्टेशन के पास पहुंच गए और पहाडि़यों के बीच सूर्योदय का आनंद लिया। सुबह ७.३० बजे तक यहां रहे और फिर वापस आने के लिए गाडि़यों में सवार हो गए।
नाइट ट्रेकिंग में इन बातों का रखें ध्यान
– नाइट ट्रेकिंग हमेशा ग्रुप में करें।
– नाइट ट्रेकिंग में लोकल सपोर्ट जरूरी है, क्योंकि स्थानीय लोग ही जंगल में भटकने से बचाते हैं। बेहतर है कि उनमें से किसी को साथ में लें क्योंकि यहां मोबाइल नेटवर्क भी नहीं मिलता।
– हर व्यक्ति के हाथ में टॉर्च हो।
– नाइट ट्रेकिंग में नीचे देख कर चलें कि कोई सांप, बिच्छू आदि तो नहीं है।
– शोर बिल्कुल न करें क्योंकि ट्रेकिंग की वजह से न तो वाइल्ड लाइफ डिस्टर्ब हो और न गांव वाले परेशान हों।
– नाइट ट्रेकिंग हमेशा ग्रुप में करें।
– नाइट ट्रेकिंग में लोकल सपोर्ट जरूरी है, क्योंकि स्थानीय लोग ही जंगल में भटकने से बचाते हैं। बेहतर है कि उनमें से किसी को साथ में लें क्योंकि यहां मोबाइल नेटवर्क भी नहीं मिलता।
– हर व्यक्ति के हाथ में टॉर्च हो।
– नाइट ट्रेकिंग में नीचे देख कर चलें कि कोई सांप, बिच्छू आदि तो नहीं है।
– शोर बिल्कुल न करें क्योंकि ट्रेकिंग की वजह से न तो वाइल्ड लाइफ डिस्टर्ब हो और न गांव वाले परेशान हों।