नाकारा बेटों के खिलाफ पिता ने जीती कानूनी जंग, बेहद दर्दभरी दास्तां
दांतारामगढ़ के रामेश्वर विद्यार्थी के चार बेटे हैं। चारों ने उन्हें बुढ़ापे में सेवा करने के बजाय घर से बाहर निकाल दिया था।

अब चारों पुत्र पिता को देेंगे हर माह 14 हजार का भरण पोषण भत्ता
दांतारामगढ़.
बेटे-बहुओं से अपमानित और प्रताडि़त रामेश्वर विद्यार्थी भरण पोषण का मुकदमा जीत गए हैं। चारों 'लायक' बेटे अब कोर्ट के आदेश के बाद अपने पिता को प्रतिमाह 14 हजार रुपए भरण पोषण के लिए देंगे। साथ ही कोर्ट ने 35 हजार रुपए की एफडी करवाने के भी आदेश दिए हैं।
दांतारामगढ़ के रामेश्वर विद्यार्थी के चार बेटे हंै। चारों ने उन्हें बुढ़ापे में सेवा करने के बजाय घर से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद ग्रामीणों ने सहारा दिया। विद्यार्थी ने यहां एसीजेएम न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर अपने भरण पोषण के लिए राशि दिलाने की गुहार लगाई थी।
न्यायाधीश आशुतोष गुप्ता ने बुधवार को अंतरिम आदेश देते हुए सरकारी सेवा वाले बड़े बेटे प्रधानाचार्य गौतम, अध्यापक आनन्द तथा लिपिक अशोक विद्यार्थी को चार-चार हजार रुपए प्रतिमाह भरण पोषण देने तथा प्रत्येक को राष्ट्रीयकृत बैेक मे दस दस हजार की एफडी करवाने के आदेश दिए हंै वहीं नीजि नौकरी कर रहे नरेन्द्र विद्यार्थी को दो हजार प्रतिमाह व पांच हजार की एफडी करवाने के आदेश दिए हैं।
सभी बेटे माह की दस तारीख से पहले यह राशि देंगे अन्यथा उनके वेतन से सीधे कटौती कर विद्यार्थी के बैक खाते में जमा करवाए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि राजस्थान पत्रिका में 15 जनवरी के अंक में आदर्श पिता को बुढापे में औलाद ने किया दरकिनार, बेटों ने नकारा ग्रामीणों का सहारा शीर्षक से खबर प्रकाशित की गई थी।
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जोगेंद्रसिंह गौड़. सीकर. देश की रक्षा के लिए दोनों आंखें गंवा देने वाले सैनिक का अपना आशियाना पाने का सपना धूमिल होता जा रहा है। जबकि प्रदेश का यह इकलौता सिपाही है, जिसने अपनी दोनों आंखें 1971 के भारत-पाक युद्ध में खो दी थी। बिड़ौदी बड़ी का यह पूर्व सैनिक महादेव इसे मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का रोना रोकर सीकर में आवास की मांग पिछले कई सालों से उठा रहा है।
70 वर्षीय नेत्रहीन इस सैनिक का यह ख्वाब जिला प्रशासन अब-तक पूरा नहीं कर पाया है। बतौर पूर्व सैनिक महादेव प्रसाद का कहना है कि इस युद्ध के दौरान वह पंजाब बॉर्डर के सेक्टर फाजिलका में तैनात था। दुश्मन की गोली आई और आंखों को चीरती हुई निकल गई।
हालांकि प्रशासन उसकी अंधेरी दूनिया को फिर से रोशन तो नहीं कर सकता है। लेकिन, सीकर में एक छोटे से आवास की व्यवस्था जुटाकर उसकी सुविधा में बढ़ौतरी कर सकता है। सुविधा के लिए प्रशासन ने आवदेन तो काफी समय पहले भरवा लिया था। परंतु सालों बाद भी वह उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाया है।
हालांकि गांव में उसका पुस्तैनी मकान है। लेकिन, कैंटीन और क्लिनिक से लेकर पूर्व सैनिकों से जुड़ी सभी सुविधा उसके गांव से कोसों दूर है। ऐसे में इनका लाभ लेने के लिए उसे हर बार बसों में धक्के खाने पड़ते हैं। नेत्रहीन होने और उम्र के इस पड़ाव में लकड़ी का सहारा भी अधूरा लगता है। इसके अलावा यहां पहुंचने के लिए गांव से एक और सहयोगी को साथ में लाना पड़ता है, जिसका किराया भी मजबूरी में उसी को वहन करना पड़ता है।
युवा में भरते हैं जोश
आंखों के मोहताज महादेव ज्यादा घूम-फिर तो नहीं सकते। लेकिन, गांव की चौपाल पर बैठने वाले युवाओं को फौज में भर्ती होने के लिए उनमें देश भक्ति का जोश भरते रहते हैं। बच्चों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते देख गांव वाले भी इस नेत्रहीन पूर्व सैनिक के कायल बने हुए हैं।
ऐसे मिला जख्म
बतौर पूर्व सैनिक के अनुसार युद्ध के दौरान दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही थी। ऐसे में दुश्मन की एक गोली चीरती हुई आई और दोनों आंखों को जख्मी कर दिया। इसके बाद फौज के बाकी के साथी उसे घायल अवस्था में आर्मी के अस्पताल ले गए। जहां ऑपरेशन के बाद चिकित्सकों ने लिख दिया कि आंख फटने के कारण भविष्य में वह कभी देख नहीं पाएगा।
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