रोगसूचक के आधार पर शोध
डा. यादव ने बताया कि 20 दिन का एक बच्चा बुखार एवं दस्त की शिकायत लेकर अस्पताल में भर्ती हुआ। उसमें शुरुआती लक्षणों में खांसी या सांस संबंधी दिक्कत नहीं थी। कोरोना जांच में बच्चा पॉजिटिव निकला। तीन अन्य बच्चे भी पेट संबंधी लक्षणों के साथ भर्ती हुए हुए जो जांच में कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इसका एक कारण यह है कि ऐसे बच्चों में वायरस का इन्फेक्शन पेट के जरिए हुआ हो। पेट में भी वायरस के एसीई 2 रिसेप्टर मिलते हैं। उल्टी-दस्त और पेट दर्द जैसे लक्षण ऐसे चार प्रतिशत बच्चों में मिले। सिर दर्द और बुखार के साथ दौरे आने की भी शिकायत 1.4 प्रतिशत में मिली। गंभीर बच्चों में रक्त के अंदर लिंफोसाइट काउंट और प्लेटलेट काउंट भी कम मिले।
दो महीने में भर्ती बच्चों पर शोध
शोध में 71 बच्चों को शामिल किया गया। अप्रेल व मई महीने में हुए शोध में सामने आया कि अन्य देशों में बच्चों में संक्रमण की दर एक से तीन साल के बच्चों में ज्यादा पाई गई थी। वही जयपुर में दस साल से ज्यादा उम्र के बच्चे 48 फीसदी संक्रमित मिले हैं। दूसरे देशों में जहां कुल केस के 2.2 प्रतिशत ही बच्चे थे।
हमारे बच्चों में क्रॉस इम्यूनिटी ज्यादा
दूसरे देशों में 23 प्रतिशत बच्चों के कोई लक्षण नहीं पाए गए। शोध में सामने आया कि देश में बीसीजी वैक्सीन ज्यादा लगाई जाती है, जिस कारण यहां पर कोरोना वायरस के प्रति हमारी इम्यूनिटी ज्यादा मजबूत है। हमारे यहां दूसरे वायरल इन्फेक्शन भी कॉमन है। जिनके कारण बच्चों में क्रॉस इम्यूनिटी ज्यादा है। बच्चों में इन वायरस के लक्षण ज्यादा दिखाई नहीं देते। शोध में यह भी पाया गया कि पेट के लक्षणों वाले बच्चे ज्यादा गंभीर थे।