सीताजी की सखी के रूप में लिखे ग्रंथ, दर्शन भी किए
महाराज अग्रदेवाचार्य महाराज ही श्रीसीतारामजी की मधुरोपासना के जनक माने जाते हैं। खुद को सीता जी की सहेली चंद्रकला के भाव में ही उन्होंने अपने सभी ग्रंथों की रचना अग्राअली के नाम से की है। सीता जी के पीहर मिथिलापुरी की मिथिलानियों के भावों को उन्होंने ही राजस्थान में जीवित किया। उनका अष्टयाम नवीन भक्तिधारा का प्रमुख ग्रंथ है। रसिक संप्रदाय की यह परंपरा ही बाद में अयोध्या व काशी तक पहुंची। रैवासा मंदिर में पीछे सियमनरंजनी वाटिका है। जो महाराज अग्रदेवाचार्य की तपोस्थली रही। कहते हैं यहीं उन्होंने मां सीता के साक्षात्कार किए थे।
रैवासा पीठ से रहा है तुलसीदासजी का संबंध
रैवासा पीठ से महाकवि व भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी का भी संबंध रह चुका है। पीठ के इतिहास में जिक्र है कि अग्रदेवाचार्य के शिष्य संत नाभाजी 16वीं शताब्दी में वृंदावन गए थे। जहां भंडारे में गोस्वामी तुलसीदासजी से उनकी मुलाकात हुई। वहां से वे दोनों साथ ही रैवासा आए। यहां तुलसीदासजी ने श्रीजानकीनाथ जी के दर्शन किए और प्रसिद्ध पद ‘जानकीनाथ सहाय करें तब कौन बिगार करें नर तेरोंÓ पद की रचना की। जो अजय देवगन अभिनीत फिल्म गंगाजल के एक गाने के बोल भी रह चुके हैं।
36 साल से 24 घंटे की रामधुनी
जानकीनाथ मंदिर में भगवान श्रीराम, सीता, लक्ष्मण व हनुमानजी की आदमकद मूर्तियां हैं। जो दिव्य, भव्य और आकर्षक लगती है। खास बात यहां दिन रात होने वाली रामधुनी भी है। जो पिछले करीब 36 सालों से लगातार दिन-रात जारी है। इसके लिए पीठ के साधु-संत व शिष्य आठ-आठ घंटे रामधुनी के लिए अपना समय बांधते हैं।
राम मंदिर भूमि पूजन के साक्षी बनेंगे महाराज राघवाचार्य
रैवासा पीठाधीश राघवाचार्य महाराज भी बुधवार को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर भूमि पूजन के साक्षी होंगे। पूजन के लिए महाराज राघवाचार्य मंगलवार को अयोध्या पहुंचे। जहां वह संत समूह के साथ श्रीराममंदिर भूमि पूजन के साक्षी बनेंगे। इससे पहले राममंदिर आंदोलन के समय भी प्रदेशभर में निकली रथयात्रा में वह संत समूह में शामिल थे। जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए पूरे राजस्थान में दो रथ यात्राएं कर जनजागरण किया था। यात्रा का रथ भी बाद में रैवासा में ही रहा।