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यह कैसी बेबसी: कहना चाहें कह ना पाएं, दिल कितना मजबूर है

locationसीकरPublished: Jan 19, 2022 12:24:20 pm

Submitted by:

Ajay

अलवर में मूक बधिर के साथ हुई घटना ने पूरे देश की सियासत को भले ही नया मुद्दा दे दिया हो, लेकिन इनके असली दर्द को कोई नहीं समझ पा रहा है।

यह कैसी बेबसी: कहना चाहें कह ना पाएं, दिल कितना मजबूर है

यह कैसी बेबसी: कहना चाहें कह ना पाएं, दिल कितना मजबूर है

अजय शर्मा
सीकर. अलवर में मूक बधिर के साथ हुई घटना ने पूरे देश की सियासत को भले ही नया मुद्दा दे दिया हो, लेकिन इनके असली दर्द को कोई नहीं समझ पा रहा है। इशारों में अपने दर्द की बेबसी बताने वाले प्रदेश के दिव्यांगों के साथ होने वाले अपराध को लेकर भी सरकार पूरी तरह गंभीर नहीं है। मूक बधिरों के साथ होने वाली घटनाओं में सत्यता तक पहुंचने के लिए दुभाषीय का अहम रोल होता है, लेकिन सीकर, चूरू व झुंझुनूं सहित प्रदेश के 22 जिलों में निजी संस्थाओं के दुभाषीय पर सरकारी जांच निर्भर है। दरअसल, प्रदेश में साइन लैंग्वेज विषय की पढ़ाई कराने के लिए कोई संस्था नहीं है। जबकि पिछले दस साल में दो बार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से साइन लैंग्वेज के पाठ्यक्रम शुरू करने की घोषणा भी हो चुकी है। फिलहाल हमारे युवाओं को डीआइएसएलआइ पाठ्यक्रम की पढ़ाई के लिए दिल्ली, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में जाना पड़ता है।


बयान कराने के लिए भी दिल्ली से बुलाने पड़ते हैं एक्सपर्ट

केस एक: कई दिनों बाद हो सके बयान
चित्तौडगढ़़ जिले में पांच साल पहले एक मूक बधिर के साथ ज्यादती का मामला सामने आया था। इस दौरान पुलिस को काफी परेशान होना पड़ा। आखिर में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण को पत्र लिखा था। इसके बाद पुलिस को दुभाषीया मिल सका और बयान हुए।

केस दो: न्याय में हो रही देरी, कौन सुने दर्द

सीकर व झुंझुनूं जिले में तलाक सहित अन्य मामलों में दुभाषीय नहीं मिलने की वजह से न्याय में देरी हो रही है। दरअसल, पहले एक संस्था से पुलिस ने एमओयू कर रखा था, लेकिन इस संस्थान के कर्मचारी को सरकारी नौकरी मिलने की वजह से एमओयू समाप्त हो गया। अब दूसरे जिलों से दुभाषीय को बुलाने के लिए पत्र लिखा है।

एक्सपर्ट व्यू: अलवर मामले में साइन लैंग्वेज विशेषज्ञ से करानी चाहिए काउंसलिंग
मूक-बधिर के साथ होने वाले अपराध का पता लगाने के लिए दुभाषीय की आवश्यकता होती है। राजस्थान सहित कई राज्यों में पाठ्यक्रम संचालित नहीं हो रहा है। इस कारण मूक बधिर के साथ होने वाले अपराध का पता करने में काफी देरी होती है। अलवर मामले में पुलिस की ओर से फिलहाल काउंसलर की मदद ली जा रही है। जल्द इस मामले में पुलिस की ओर से साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट को बुलाया जा सकता है। पीडि़ता की यदि साइन लैंग्वेज विशेषज्ञों से काउंसलिंग कराई जाए तो मामला जल्द खुल सकता है।

सुदीप गोयल, निदेशक, आशा का झरना विशेष स्कूल, नवलगढ़


निजी संस्थाओं का भी मोहभंग, दूसरे पाठ्यक्रमों पर जोर

प्रदेश में दिव्यांगों की शिक्षा के क्षेत्र में 55 से अधिक सामाजिक संस्थाएं सक्रिय हैं। विशेष विद्यार्थियों के शिक्षक तैयार करने वाले पाठ्यक्रमों पर तो इनका फोकस है, लेकिन दुभाषीय सहित अन्य पाठ्यक्रम संचालित नहीं किए जा रहे हैं।


इसलिए दुभाषीय की आवश्यकता

-दिव्यांग यदि खुद कोई अपराध करते हैं तो पूछताछ के लिए भी दुभाषीय की आवश्यकता होती है। इससे मामले का खुलासा समय पर किया जा सकता है।
-किसी घटना में मूक बधिर खुद प्रत्यक्षदर्शी हो तो वह अपनी बात किसे और कैसे बताए।

-इनके साथ कोई अपराध होता है तो वे कैसे अपना दर्द बताए।

फिलहाल यह हो सकता है समाधान
सरकार की ओर से पहली बार मूक बधिरों को पढ़ाने के लिएद्वितीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती की गई है। सरकार इन विशेष शिक्षकों को अपने खर्चे पर साइन लैंग्वैज की पढ़ाई करवा सकती है। इनको शॉर्ट टर्म कोर्स कराए जा सकते हैं। इन्हें बयान दर्ज कराने सहित अन्य अधिकार भी दिलाए जा सकते हैं।

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