हादसे के बाद बस में सवार स्कूली बच्चे सहम गए। सूचना पर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी भी कल्याण अस्पताल पहुंचे। पलथाना के राजकीय सीनियर सैकण्डरी स्कूल के 65 बच्चों को बुधवार सुबह स्कूल के 12 शिक्षक शैक्षणिक भ्रमण के लिए जयपुर ? लेकर गए थे।
जयपुर से भ्रमण के बाद सभी बच्चे व शिक्षक वापस सीकर लौट रहे थे। दिनभर की थकान के कारण कई बच्चे नींद में गाफिल थे। मलकेड़ा के आगे सडक़ पर बने कट पर एक ट्रोला चालक ने साइड बदलने के लिए कट से ट्रोला निकाला। इसी दौरान सामने से बस आ गई। जिससे ट्रोला अनियंत्रित होकर बस से टकरा गया। ट्रोला चालक ने ट्रोला पीछे लेकर फिर से निकालने का प्रयास किया।
आंखों में आंसू के साथ दर्द के बीच अजीब सा भय कल्याण अस्पताल के बाहर चबूतरे पर बैठे हर बच्चों के चेहरे पर नजर आ रहा था। अपने से छोटी कक्षाओं के विद्यार्थियों को दिलासे देते बड़ी कक्षा के विद्यार्थी बड़प्पन भी दिखा रहे थे तो शिक्षक भी हिम्मत बंधाने में पीछे नहीं थे। कल्याण अस्पताल में बुधवार रात को घायल विद्यार्थियों के साथ पहुंचे अन्य विद्यार्थियों ने कुछ इसी तरह का हौंसला दिखाया। घायल विद्यार्थियों के दर्द को कम करने के लिए डे्रसिंग रूम में भी एक दूसरे को ढाढ़स बंधाया जा रहा था। सभी के चेहरे पर हादसे का दर्द तो था, लेकिन हिम्मत किसी ने नहीं छोड़ी।
घर जाने की खुशी दर्द में बदली
जयपुर में दिनभर की मस्ती व थकान के बीच जल्द घर पहुंचने की खुशी सीकर पहुंचने से पहले ही विद्यार्थियों को दर्द दे गई। ट्रोले के बस से टकराते ही धमाके की आवाज से हर कोई दहल गया। करीब आधा घंटे तक बच्चे सामान्य नहीं हो पाए। कई बच्चे तो बस से उतरते ही रोना शुरू हो गए। अस्पताल के बाहर मासूमियत से बच्चे परिजनों को सूचना देने के लिए मोबाइल मांगते रहे। जिससे घर पर सूचना देकर परिजनों को बुलाया जा सके।
जयपुर में दिनभर की मस्ती व थकान के बीच जल्द घर पहुंचने की खुशी सीकर पहुंचने से पहले ही विद्यार्थियों को दर्द दे गई। ट्रोले के बस से टकराते ही धमाके की आवाज से हर कोई दहल गया। करीब आधा घंटे तक बच्चे सामान्य नहीं हो पाए। कई बच्चे तो बस से उतरते ही रोना शुरू हो गए। अस्पताल के बाहर मासूमियत से बच्चे परिजनों को सूचना देने के लिए मोबाइल मांगते रहे। जिससे घर पर सूचना देकर परिजनों को बुलाया जा सके।
ट्रोमा में अफरा-तफरी का माहौल
सडक़ हादसे में घायल बच्चों के अस्पताल के ट्रोमा यूनिट में पहुंचने पर अफरा-तफरी मच गई। कोई बच्चों को ड्रिप लगा रहा तो कई टांके। एक साथ दर्जनों बच्चों के पहुंचने से नर्सिंग कर्मी और चिकित्सकों में हडकम्प मच गया। आयुष चिकित्सक और नर्सिंग स्टॉफ ने कमान संभाली। ट्रोमा यूनिट घायल बच्चों की चीख पुकार से गूंज उठा। घायल बच्चे व स्कूल के अध्यापक एक दूसरे को संभालने में जुट गए। ट्रोमा यूनिट में बैड की कमी के कारण घायल बच्चों को बैंचों और स्ट्रेचरों पर लिटाकर इलाज किया। इस दौरान एलोपैथी चिकित्सक नहीं होने से बच्चों को इलाज के लिए परेशानी हुई। इस दौरान परिजनों के पहुंचने से अस्पताल परिसर के बाहर भीड़ जमा हो गई।
सडक़ हादसे में घायल बच्चों के अस्पताल के ट्रोमा यूनिट में पहुंचने पर अफरा-तफरी मच गई। कोई बच्चों को ड्रिप लगा रहा तो कई टांके। एक साथ दर्जनों बच्चों के पहुंचने से नर्सिंग कर्मी और चिकित्सकों में हडकम्प मच गया। आयुष चिकित्सक और नर्सिंग स्टॉफ ने कमान संभाली। ट्रोमा यूनिट घायल बच्चों की चीख पुकार से गूंज उठा। घायल बच्चे व स्कूल के अध्यापक एक दूसरे को संभालने में जुट गए। ट्रोमा यूनिट में बैड की कमी के कारण घायल बच्चों को बैंचों और स्ट्रेचरों पर लिटाकर इलाज किया। इस दौरान एलोपैथी चिकित्सक नहीं होने से बच्चों को इलाज के लिए परेशानी हुई। इस दौरान परिजनों के पहुंचने से अस्पताल परिसर के बाहर भीड़ जमा हो गई।
एम्बुलेंस की कमी खली
चिकित्सा विभाग की ओर से घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए दावा किया जाता है,लेकिन जिले में इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी एक भी एम्बुलेंस 108 मौके पर नहीं पहुंच पाई। घायल बच्चों को लेकर लोग निजी साधनों से अस्पताल पहुंचे। गनीमत रही कि बच्चे गंभीर रूप से घायल नहीं हुए।
चिकित्सा विभाग की ओर से घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए दावा किया जाता है,लेकिन जिले में इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी एक भी एम्बुलेंस 108 मौके पर नहीं पहुंच पाई। घायल बच्चों को लेकर लोग निजी साधनों से अस्पताल पहुंचे। गनीमत रही कि बच्चे गंभीर रूप से घायल नहीं हुए।
अस्पताल में घायल शिक्षक करवाते रहे बच्चों का उपचार
कल्याण अस्पताल में घायल बच्चों का उपचार करने के लिए डॉक्टर तो नहीं मिल पाए, लेकिन नर्सिंगकर्मियों ने बच्चों की पट्टी के साथ फ्रेक्चर वाले छात्रों का उपचार किया। इस दौरान खून से सने शिक्षक अपनी चोट की परवाह किए बिना घायल बच्चों की सुध लेते रहे। हादसे की सूचना मिलते ही कल्याण अस्पताल में पलथाना स्कूल के अन्य स्टॉफ सदस्य भी पहुंच गए।
परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल
अस्पताल में अपने मासूम को घायल देखकर परिजनों का भी रो-रोकर बुरा हाल था। जयपुर घूमकर आ रहे लाडले के इंतजार में परिजन शाम से ही स्कूल के स्टाफ से सम्पर्क कर रहे थे। इसी बीच हादसे की सूचना मिलते ही परिजन अस्पताल की ओर दौड़ पड़े। परिजनों के अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनके रिश्तेदार अस्पताल में पहुंच गए। अधिकतर बच्चे पलथाना व आस-पास के गांवों के थे। ऐसे में सीकर पहुंचने में भी परिजनों को करीब आधा घंटे से अधिक समय लग गया।
कल्याण अस्पताल में घायल बच्चों का उपचार करने के लिए डॉक्टर तो नहीं मिल पाए, लेकिन नर्सिंगकर्मियों ने बच्चों की पट्टी के साथ फ्रेक्चर वाले छात्रों का उपचार किया। इस दौरान खून से सने शिक्षक अपनी चोट की परवाह किए बिना घायल बच्चों की सुध लेते रहे। हादसे की सूचना मिलते ही कल्याण अस्पताल में पलथाना स्कूल के अन्य स्टॉफ सदस्य भी पहुंच गए।
परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल
अस्पताल में अपने मासूम को घायल देखकर परिजनों का भी रो-रोकर बुरा हाल था। जयपुर घूमकर आ रहे लाडले के इंतजार में परिजन शाम से ही स्कूल के स्टाफ से सम्पर्क कर रहे थे। इसी बीच हादसे की सूचना मिलते ही परिजन अस्पताल की ओर दौड़ पड़े। परिजनों के अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनके रिश्तेदार अस्पताल में पहुंच गए। अधिकतर बच्चे पलथाना व आस-पास के गांवों के थे। ऐसे में सीकर पहुंचने में भी परिजनों को करीब आधा घंटे से अधिक समय लग गया।