भगवान किसी को ना दे ऐसा दर्द
कुदरत का इससे बड़ा क्रूर मजाक क्या होगा कि तीन तीन संतान होने के बावजूद मां अपने बच्चों से न लाड़ दुलार कर पा रही है। तीन में से दो संतान ने आज तक मां बाप का चेहरा तक नहीं देखा और तो ओर मां की आवाज तक नहीं सुनी। मां और बच्चों में बड़ा स्नेह होता है, लेकिन यह स्नेह सिर्फ हृदय तक सिमटा हुआ रह गया है।
बड़ी बेटी करती मध्यस्थता
बाबूलाल के परिवार में पांच सदस्य हैं। इनमें बड़ी बेटी लक्ष्मी को एक आंख से हल्का सा दिखाई देता है। ऐसे में सबके बीच सेतु का कार्य करती है। वह मां के इशारों को समझ कर अपने छोटे भाई व बहन को बताती है। भाई व बहन के संदेश को सुनकर मां को इशारों में बताती है। पिता बाहर रहते हैं तो घर पर छोटे भाई व बहन का ख्याल रखती है। पूजा चौथी क्लास तक पढ़ी हुई है। शादी के लायक होने के बावजूद भी परिवार शादी नहीं कर पा रहा है, क्योंकि उनको डर यह है कि फिर घर पर इनको कौन संभालेगा।
बंद पड़ी हैं सरकारी तंत्र की आंखें
परिवार पर कुदरत की तो मार है ही लेकिन सरकारी तंत्र का रवैया भी उस पर मरहम लगाने का काम नहीं कर रहा। बच्चों को दिखता नहीं है, मां बोल नहीं सकती, लेकिन सरकारी तंत्र की आंखें भी इतनी कमजोर हो गई कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। ना मां का दर्द ना ही मासूमों की पीड़ा।