भयावह: ..तो जल्द खत्म हो जाएगा धरती का पानी
अजय शर्मा
सीकर. सरकार की ट्यूबवैल खुदवाने की खूली छूट से हालात भयावह हो रहे हैं। जिस प्रदेश हर जिले में औसत एक साल में 300 ट्यूबवैल खोदे जा रहे थे, वहां अब दिन रात बोरवेल मशीन खुदाई में जुटी रहने लगी है।

सीकर. सरकार की ट्यूबवैल खुदवाने की खूली छूट से हालात भयावह हो रहे हैं। जिस प्रदेश हर जिले में औसत एक साल में 300 ट्यूबवैल खोदे जा रहे थे, वहां अब दिन रात बोरवेल मशीन खुदाई में जुटी रहने लगी है। सरकारी छूट के बाद प्रदेशभर में दस हजार से अधिक ट्यूबवैल खुदाई का अनुमान है। जिससे आने वाले समय में धरती का पानी खत्म होने से पानी का भीषण संकट खड़ा होना तय होता जा रहा है। आलम ये है कि अकेले सीकर, चूरू व झुंझुनंू जिले में इन दिनों रोजाना 70 से 100 ट्यूबवैल खोदे जा रहे हैं। जबकि तीनों जिलों के 20 से अधिक ब्लॉक डार्कजोन में है। यदि यही स्थिति रही तो आगामी दिनों में पेयजल को लेकर और हालात भयावह हो सकते हैं। सरकार ने विभिन्न वर्गों को छूट तो दे दी लेकिन नियंत्रण का जिम्मा किसी विभाग को नहीं दिया है। इधर, लगातार हो रही नए ट्यूबवैलों की खुदाई ने विद्युत कनेक्शन को लेकर बिजली निगम की चुनौती बढ़ा दी है।
पहले: कलक्टर की अनुमति के बिना एक भी ट्यूबवैल की खुदाई नहीं
सरकारी छूट से पहले प्रदेश के सभी जिलों में जिला कलक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी हुई थी। यह कमेटी पेयजल के हालातों को देखकर ट्यूबवैलों को खोदने की अनुमति देती थी। यहां तक कि ट्यूबवैलों की गहराई बढ़ाने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता थी। अब यह बाध्यता सरकार ने समाप्त कर दी है।
एक ट्यूबवैल पर ढाई से तीन लाख का खर्चा
एक ट्यूबवैल की खुदाई, पाइप व बिजली फिटिंग का लगभग ढाई से तीन लाख रुपए का खर्चा आता है। इसके बाद भी लोग लगातार ट्यूबवैल कराने में जुटे हैं।
बिजली निगम: कनेक्शन देना बड़ी चुनौती
कृषि कनेक्शनों के लिए प्रदेशभर के किसानों को कई महीनों का इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा ट्यूबवैल भी कट ऑफ डेट से पहले का होना चाहिए। राजस्व विभाग के रेकार्ड में अंकन भी बड़ी चुनौती रहती थी। लेकिन अब सरकारी छूट की वजह से बिजली निगम के सामने कनेक्शन देना चुनौती बन गया है। छूट के बाद अकेले सीकर जिले में 500 से अधिक फाइलें तो जमा हो चुकी है। मार्च तक सीकर जिले में 1500 से अधिक फाइल जमा होने की संभावना है।
इस बार कोई ऑफ सीजन नहीं
सरकार की नई नीति से बोरवेल मालिकों और किसानों को फायदा हो रहा है। लेकिन भूमिगत जलस्तर में भी तेजी से गिरावट आने की आशंका है। नवंबर से फरवरी तक खेतों में फसल होने से हमारे पास न के बराबर बोरिंग के ऑर्डर आते थे, लेकिन इस वर्ष दिन-रात नए ट्यूबवेल खोदे जा रहे हैं। दो महीने में सबसे ज्यादा ट्यूबवैल खुदाई हुई है।
सांवरमल मंडीवाल, बोरवैल संचालक
एक्सपर्ट व्यू
सरकार करें निगरानी तंत्र विकसित
सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए यह छूट दी है। लेकिन सरकार को निगरानी तंत्र निश्चित तौर पर विकसित करना चाहिए। यदि ऐसे ही हालात रहें तो कुछ सालों में धरती में पानी खत्म होने से हालात भयावह हो सकते हैं। शेखावाटी में पेयजल पहले से बड़ी समस्या है। अन्य राज्यों में अभी छूट नहीं दी गई है। स्थानीय प्रशासन चाहे तो राजस्व व ग्राम पंचायत की मदद से निगरानी तंत्र विकसित कर सकता है।
आरडीएस ज्याणी, सेवानिवृत्त वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक
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