चार माह में तैनात नहीं हो पाया स्टाफ, संसाधनों का अभाव
जघन्य अपराधों में मौके से सबूत एकत्र कर अपराधियों को कड़ी सजा दिलवाने के लिए प्रदेश में शुरू की गई मोबाइल इंवेस्टीगेशन यूनिट सीकर में चार माह बाद भी शुरू नहीं हो पाई है। यूनिट के लिए जिले में आई तीनों लग्गजरी गाडिय़ां एक ही स्थान पर खड़ी है। पुलिस मुख्यालय ने इसके लिए जिले के एक हैडकांस्टेबल को जयपुर बुलाकर प्रशिक्षण दे दिया है, लेकिन पूरे स्टाफ की तैनाती नहीं होने के कारण उन्हें प्रशिक्षण भी नहीं दिया जा सका है। जबकि इन वाहनों को सीकर सदर, फतेहपुर सदर और नीमकाथाना सदर थाने को आवंटित कर दिया गया है।
कई जिलों में शुरू नहीं हो पाई यूनिट मोबाइल इंवेस्टिगेशन यूनिट प्रदेश के कई जिलों में चालू नहीं हो पाई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दस करोड़ के बजट से प्रदेश के विभिन्न जिलों के लिए अप्रेल माह में 71 मोबाइल यूनिट रवाना की थी। इन यूनिटों में मौके पर जांच, सबूत एकत्र करने के साथ पीड़ित के मौके पर ही बयान लेने के भी संशाधन होने चाहिए थे। कुछ संशाधन को वैन के साथ भेज दिए गए, लेकिन पूरे संशाधन नहीं होने के कारण प्रदेश के कई जिलों में यह यूनिट शुरू नहीं हो पाई है। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि थानाधिकारी यूनिट को बुलाने को लेकर भी गंभीर नहीं है। वह थाने में उपलब्ध संशाधनों से ही सबूत एकत्र कर जांच करने में विश्वास रखते हैं।
’जुनून’ का महज 15 वारदातों में उपयोग सीकर पुलिस के पास प्रशिक्षित डॉग ’जुनून’ है। जुनून झुंझुनूं और सीकर जिले मे हत्या, लूट और डकैती की कई वारदातों में पुलिस को अपराधी की राह दिखा चुका है। लेकिन पुलिस ने इसका उपयोग कम कर दिया है। इस वर्ष में महज 15 वारदातों में ही जुनून को बुलाया गया है। स्थिति है कि वारदात के दौरान जुनून को ऑटो में मौके पर ले जाया जाता है। जबकि दूसरे जिलों में वारदात की सूचना मिलने पर लाइन से वाहन और चालक आवंटित कर डॉग को मौके पर भेजा जाता है। यह ही स्थिति कार्यप्रणाली शाखा (एमओबी) की सक्रियता को लेकर है। एमओबी के पास फुट और चांस प्रिंट उठाने का जिम्मा होता है, लेकिन पुलिस का यह विभाग महज अपराधियों का रिकॉर्ड संधारण करने में जुटा रहता है।