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सूखते टयूबवैलों व नलकूपों में कैसे आया पानी, जानें युवाओं के जज्बे की कहानी

locationसीकरPublished: Jun 05, 2020 10:22:22 pm

Submitted by:

Vikram

सीकर. प्यासी धरती को मानसून की दरकार है। जल्द ही मानसून आने वाला है। लगातार पानी का दोहन करने से जलस्तर कम हो रहा है। हर साल करीब दो से तीन फीट तक जलस्तर कम हो जाता है। जलस्तर को बढ़ाने के लिए शहर से सात किलोमीटर की दूरी पर हर्ष गांव के लोगों ने एक नई मिसाल पेश की है।

 गांव के चार हिस्सों में प्लांट लगाए

गांव के चार हिस्सों में प्लांट लगाए

सीकर. प्यासी धरती को मानसून की दरकार है। जल्द ही मानसून आने वाला है। लगातार पानी का दोहन करने से जलस्तर कम हो रहा है। हर साल करीब दो से तीन फीट तक जलस्तर कम हो जाता है। जलस्तर को बढ़ाने के लिए शहर से सात किलोमीटर की दूरी पर हर्ष गांव के लोगों ने एक नई मिसाल पेश की है। गांव के युवाओं ने मिलकर तीन साल में चार वाटर रिजार्च व हारवेस्टिंग प्लांट लगा दिए है। गांव का पानी प्लांट के जरिए फिल्टर होकर जमीन में चला जाता है। गांव के चार हिस्सों में प्लांट लगाए है। जिससे पानी का जलस्तर बढऩे लगा है। विवेकानंद हर्ष मंडल के सदस्य शंकर सैनी ने बताया कि गांव में हर साल दो से तीन फीट तक पानी नीचे जा रहा था। कई हैंडपंप सूख गए। कई टयूबवैल सूख चुके है। ऐसा नही है कि यहां पर बारिश नहीं होती है। अच्छी बारिश होने के बावजूद भी जलस्तर कम हो रहा था। अब जलस्तर भी कम नहीं हो रहा है, बल्कि जलस्तर में काफी सुधार हुआ है। वे एक नया पांचवां प्लांट लगाने की योजना बना रहे है। राजस्थान में दूसरी सबसे ऊंचे हर्ष पर्वत के रूप में यहां की पहचान बनी हुई है। जिले में दांतारामगढ़, खंडेला, फतेहपुर सहित कई जगहों पर पीने को पानी नहीं है। कहीं पर है तो खारा पानी आता है। ऐसे में कई जगहों को सरकार ने डार्क जोन घोषित कर दिया है। पर युवाओं की मेहनत ने यहां पर बदलाव शुरू किया है। पूर्व कलक्टर नरेश ठकराल भी इन्हें सम्मानित कर चुके है।
2018 में लगाया पहला प्लांट
शंकर सैनी ने बताया कि गांव के युवाओं ने मिलकर विवेकानंद हर्ष मंडल एक समिति बनाई। समिति ने गांव में पानी की समस्या को दूर करने की योजना बनाई। गांव का गंदा पानी एक जगह भरा हुआ रहता था। गंदे पानी का समाधान करने लगे तो उनका संपर्क बजाज ट्रस्ट से हुआ। उन्होंने पानी के रिजार्च प्लांट के बारे में बताया। इसके बाद प्लांट बना दिया। जिससे गंदा पानी फिल्टर होकर जमीन में जाने लगा। गांव में कई जगहों पर बरसात का पानी इक_ा हो जाता है। वहां पर उन्होंने प्लांट लगाया। अब बरसात का पूरा पानी भी जमीन में ही जाने लगा। तब हर साल उन्होंने एक-एक प्लांट बनाने का प्रण लिया। इसी का परिणाम रहा कि गांव के जलस्तर में सुधार होने लगा।
कैसे करता है काम
मुकेश सैनी ने बताया कि गांव में 160 फीट पर पानी है। वे 130 फीट तक एक पाइप ले जाते है। पाइप के चारों ओर छेद कर दिए जाते है। साथ ही पाइप के पूरे हिस्से में जाली लगा देते है। करीब बीस फीट का पक्का गड्डा खोद कर बनाया दिया जाता है। पाइप के चारों ओर बीस फीट तक कंक्रीट डाल देेेते है। फीट पाइप के जरिए पानी को पक्के गड्ड्े में डाला जाता है। गड्डे से पानी कंक्रीट से निकल कर फिल्टर होते हुए पाइप में जाता है। पाइप से पानी सीधे जमीन में जाता है।
एक प्लांट में 1.20 लाख का खर्चा
शंकर सैनी ने बताया कि एक प्लांट को पाइप डाल कर तैयार करने में 1.20 लाख रुपए का खर्चा आता है। खर्चे को बचाने के लिए पूरी विवेकानंद हर्ष मंडल की टीम एकजुट होकर मेहनत करती है। गांव में कई टयूबवैल सूख चुके है। उन्हें वे चिन्हित करते है। बेकार पड़े टयूबवेलों पर वे प्लांट की योजना बनाते है। इससे काफी खर्चा कम हो जाता है।
एक-एक कर जुड़ता गया कारवां
गांव में प्लांट लगाने का विरोध हुआ। लोगों से काफी समझाइश की। विवेकानंद हर्ष मंडल समिति का भी विरोध होने लगा। पहले केवल कुछ ही युवा थे। पर अब काफी बड़ी टीम है। टीम में प्रमोद सैनी, सुनील फौजी, अक्षय शर्मा, करण शर्मा, नेमीचंद सैनी, अशोक, महेश, केशरदेव,राधेश्याम, बंटी सहित करीब 35 युवा शामिल है।
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