पिछले कई महीनों से अभिभावक व सामाजिक संस्थाओं की ओर से इस एक्ट को प्रभावी करने की मांग उठ रही थी। इस दौरान शिक्षा राज्य मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा ने जल्द इस कानून को धरातल पर लाने की बात कही थी। गौरतलब है कि पिछली भाजपा सरकार के समय फीस एक्ट बना था। लेकिन इसके लागू होते ही कई निजी संस्थाओं ने इसे न्यायालय में चुनौती दे दी थी। इसके बाद से यह मामला न्यायालय में था। इस मामले में न्यायालय ने अब सरकार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इस एक्ट के सही बताया है। इस कानून के लागू होने के बाद प्रदेश के 35 हजार से अधिक निजी स्कूलों को कानून की पालना करनी होगी। फीस एक्ट की पालना नहीं होने शिकायत मिलने पर निजी स्कूल के खिलाफ विभाग दंडात्मक कार्रवाई भी कर सकेगा।
एक बार तय फीस, तीन साल तक नहीं बढ़ेगी
स्कूल में फीस बढ़ोतरी के बाद तीन साल तक दुबारा फीस नहीं बढेग़ी। समिति में प्रिंसिपल, तीन शिक्षक व अभिभावक शामिल होंगे। यह समिति हर विद्यालय स्तर पर भी होगी। जिला स्तर व राज्य स्तर पर शिक्षा विभाग के अधिकारी हर विद्यालय के फीस रेकार्ड पर निगरानी रखेंगे।
50 हजार से ढ़ाई लाख रुपए तक जुर्माना
निजी स्कूलों ने ज्यादा फीस वसूली तो ढ़ाई लाख रुपए तक का जुर्माना लग सकेगा। कमेटी की तय फीस नहीं मानने वाले निजी स्कूलों पर 50 हजार से 2.50 लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है। फिर भी नहीं मानें तो कम से कम एक लाख रुपए या स्कूल प्रबंधन द्वारा वसूली गई राशि के दोगुने जुर्माने में से जो भी अधिक हो वह वसूलने का प्रावधान किया है।
मजबूत पैरवी से मिली जीत: डोटासरा
शिक्षा राज्य मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा ने कहा कि भाजपा जब फीस एक्ट को लेकर आई थी तब इसमें कई कमियां छोड़ दी। इस कारण यह एक्ट न्यायालय तक पहुंच गया। हमारी सरकार ने जनता की भावनाओं को समझते हुए न्यायालय में मजबूत तरीके से पैरवी कराई। इससे सरकार की जीत हुई है।