रामलीला के साथ दशहरे मेले का आयोजन भी सांस्कृतिक मंडल की ओर से 1953 से किया जा रहा है। दशहरे मेले के दौरान करीब 52 फीट ऊंचे रावण का पुतला लगाया जाता है। रघुनाथ मंदिर से रवाना होने वाली रामदल की सेना रथ व ट्रक में रामलीला मैदान पहुंचती है। रामलीला मैदान में भगवान राम अग्निबाण से रावण के पुतले का दहन करते हैं। 1981 में भगवान राम की सवारी रंगमंच पर पहुंचने के साथ ही अचानक रावण के पुतले में आग लग गई।
दशहरे तक ही सबकुछ सीमित रहता था। इससे पहले लवकुश नाटक का मंचन नहीं किया जाता था। 1971 में लवकुश नाटक के मंचन की भी शुरुआत की गई। लवकुश नाटक के साथ ही अब रामलीला का समापन होता है।
रामजन्म से अयोध्या में खुशी
सीकर. शहर में सांस्कृतिक मंडल की ओर से संचालित रामलीला में शुक्रवार को गणेश वंदना के बाद राजा दशरथ के यहां पुत्र जन्म से पहले यज्ञ करवाने का दृश्य दिखाया गया। इसके बाद राजा दशरथ के पुत्र के रूप में भगवान श्रीराम के जन्म के साथ ही अयोध्या में खुशियां छा जाती है। इन दृश्यों के बीच भक्तिमय व हास्यरस से ओतप्रोत लघु नाटिकाओं का भी मंचन किया जाता है। जिससे बीच-बीच में दर्शकों का समां बंधा रहे। रामलीला में रामजन्म के बाद ऋषि विश्वामित्र राम, लक्ष्मण सहित चारों भाईयों को धनुष विद्या सिखाने वन में ले जाते हैं। वहां पर ताडक़ा नाम की असुर शक्ति का भगवान राम वध करते हैं।
आज होगा राम को 14 वर्ष का वनवास
शनिवार रात को रामलीला में सीता से स्वयंवर कर राम अयोध्या लौटते है। अयोध्या में राम व सीता के स्वयंवर पर खुशियां मनाई जा रही है। इसी दौरान राजा राम मे राज्याभिषेक की तैयारी शुरू होती है।