भारत माता के लिए कुछ कर गुजरने की मन में ठानी मंजिल अभी बाकी थी। जिसका जिक्र वह छुट्टियों में घर लौटने पर अक्सर यार-दोस्तों में करता। कहता- ’कुछ ऐसा कर जाउंगा कि सब याद रखेंगे’। आखिरकार 1999 के करगिल युद्ध ( Kargil war in 1999 ) में उसने कही कर भी दिखाई। 7 जुलाई को मोस्का पहाड़ी स्थित पाकिस्तानी घुसपैठियों का आसान निशाना होने पर भी दुर्गम चट्टानों को पार करते हुए इस जांबाज ने अपनी पलटन के साथ एक के बाद एक 15 घुसपैठियों को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन, जैसे ही वह सैनिक चौकी पर भारतीय झंडा फहराने के मुहाने पर था, इसी दौरान दुश्मन के एक आरडी बम के धमाके ने उसे हमेशा के लिए मौन कर दिया। जिस तिरंगे से उसे सबसे ’यादा प्रेम था उसी में लिपटी उसकी पार्थिव देह अगले दिन घर पहुंची। जिसे नमन करने के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा।
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बेटों को भी सेना में भेजने की चाह
श्योदाना राम की अपने दोनों बेटों को भी सेना में भेजने की इ‘छा थी। जिसे पूरा करने की चाह वीरांगना भंवरी देवी के साथ दोनों बेटों संदीप और प्रदीप ने भी पाल रखी है। संदीप बीटेक कर सेना में अफसर पद पर तो प्रदीप भी सेना से संबंधित प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा है।
शहीद से पूछकर निकलते हैं घर से बाहर
श्योदाना राम को शहीद हुए 20 साल हो गए। लेकिन, आज भी वह परिवार में मुखिया की भूमिका में है। घर से अंदर- बाहर के रास्तों पर सामने ही परिवार ने श्योदाना राम की तस्वीर लगा रखी है। जिसके सामने परिवार के सदस्य अपने घर से आने और बाहर जाने की सूचना देते हैं। शहीद की याद परिवार के जहन के साथ घर के जर्रे जर्रे में नजर आती है।